Book Title: Raghuvansh Mahakavya
Author(s): Kalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
Publisher: Motilal Banarsidass
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उपोद्घात
संम्भवतः अन्य किसी कवि को नहीं, अतः प्रत्येक व्यक्ति उन्हें स्वक्षेत्री समझ तो आश्चर्य नहीं ।
वस्तुस्थिति यह है कि कालिदास ने अपनी रचनाओं में सम्पूर्ण भारत-, बृहत्तर भारत के प्रति जो देशप्रेम और अपनत्व प्रकट किया है उससे उन्हें किसी संकीर्ण क्षेत्र का निवासी न मानकर संपूर्ण भारत को उनका जन्मस्थान माना जाय । कालिदास भारत में जन्मे, भारत में रहे । तत्कालीन भारत का सर्वोत्कृष्ट चित्रण अपने काव्यों में जैसा कालिदास ने किया ऐसा अन्य किसी ने नहीं ।
स्थितिकाल
यों तो कालिदास को ईसा से ५०० वर्ष पहिले मानें या ५०० वर्ष बाद, इससे उनकी महनीयता में कोई अन्तर नहीं आता । पाश्चात्य विद्वानों एवं उनके अनुयायी भारतीय कुछ विद्वानों ने भी काल-विषयक जो खींचतान की है, उसे सिवाय दुराग्रह के और कुछ नहीं कहा जा सकता । हमें यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं कि पाश्चात्य विद्वान् भारतीय ग्रन्थों एवं ग्रन्थकारों की बहिन से कितनी ही प्रशंसा करें पर उनका अन्तर्मन दूषित है । वे हमारी उत्कृष्ट संस्कृति की प्राचीनता को सहन नहीं कर सकते। उनकी चेष्टा रहती है कि वे किसी भी भारतीय ग्रन्थ या ग्रन्थकार की स्थिति की सीमा को ईसा के बाद जितना अधिक संभव हो बढ़ावें ताकि उनकी संस्कृति हमसे प्राचीन सिद्ध हो सके । भारत के विकास में सदा जीवन को ही महत्त्व मिला है जीवनी को नहीं, यही कारण है कि हमारे प्राचीन महापुरुषों, विद्वानों, कवियों और रचनाकारों का वाङ्मय - वैभव तो हमें उपलब्ध है पर उनकी जीवनी हमारे लिये वेदान्तियों के ब्रह्म की भांति रहस्य ही बनी हुई है । कालिदास भी इसके अपवाद नहीं ।
जब तक ज्ञातकाल शिलालेखों और प्राचीन अलंकार-ग्रन्थों में निर्दिष्ट नियमों के साथ मिलाकर कालिदास की प्रत्येक रचना की भाषाशैली और साहित्यिक परिभाषाओं का गम्भीर अनुसन्धान न किया जाय तब तक कालविषयक प्रश्न का निश्चित हल संभव नहीं है। रघुवंश की अग्निवर्णवर्णन में समाप्ति देखकर उन्हें ई०पू० ३०० में मानना या किन्हीं अन्य