Book Title: Pruthvi ke Akar evam Bhraman ke Vishay me Samikshtmak Prashnavali Author(s): Abhaysagar Publisher: Jambudwip Nirman Yojna View full book textPage 5
________________ प्रारम्भ किया और सतत परिशीलन के परिणाम स्वरूप अनेक ऐसे तथ्य ढूँढ़ निकाले कि जिससे 'पृथ्वी के आकार, भ्रमण, गुरुत्वाकर्षण, चन्द्र की परप्रकाशिता' जैसे विषयों पर आधुनिक वैज्ञानिकों की मान्यताओं के मूल में स्थित ' भ्रान्तधारणाएँ, कल्पनाएँ, तथा प्रपूर्णताएँ' प्रत्यक्ष प्रस्फुटित होने लगीं । ऐसे सारपूर्ण विचारों को भूगोल वेत्ताओं के समक्ष उपस्थित करने और एतद्विषयक मनीषियों के उपादेय विचारों को जानने के लिये अनेक मनीषियों ने मुनिवर्य से प्रार्थनाएँ कीं, और उन्होंने अपनी साधना में निरन्तर संलग्न रहते हुए भी लोकोपकार की दृष्टि से अपने विचारों को लिपिबद्ध करने की कृपा की । यह विचार परम्परा विषय की गम्भीरता एवं विशालता के कारण अनेक रूपों में विभक्त हो, यह स्वाभाविक ही है । मैंने मुनिश्री के निकट बैठकर उनके विचारों, तर्कों और उत्तरप्रत्युत्तरों को समझा है तथा तदनुसार ही उन्हें संकलित कर प्रस्तुत पुस्तिका के रूप में उपस्थित किया है । विश्वास है विज्ञ पाठक इसका सावधान - मस्तिष्क से परिशीलन करेंगे तथा इस विषय पर अपने विचारों से हमें अवगत कराने की अनुकम्पा करेंगे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat - रुद्रदेव त्रिपाठी www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26