Book Title: Prem
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 22
________________ प्रेम ३३ कहने कहने का तरीका प्रश्नकर्ता पर मुझे क्या करना चाहिए? दादाश्री : अपना बोला हुआ नहीं फलता हो तो हमें चुप हो जाना चाहिए। हम मूरख हैं, हमें बोलना नहीं आता, इसलिए बंद हो जाना चाहिए। अपना बोला हुआ फलता नहीं और उल्टा अपना मन बिगड़ता है, अपना अवतार बिगड़ता है। ऐसा कौन करे फिर? इसलिए एक व्यक्ति सुधारा जा सके, ऐसा यह काल नहीं है। वही बिगड़ा हुआ है, सामनेवाले को क्या सुधारेगा फिर ? वही वीकनेस का पुतला हो, वह सामनेवाले को क्या सुधारेगा फिर ? ! उसके लिए तो बलवानपन चाहिए । इसलिए प्रेम की ही ज़रूरत है। प्रेम का पावर सामनेवाले का अहंकार खड़ा ही नहीं होता। सत्तावाली आवाज़ हमारी नहीं होती। इसलिए सत्ता नहीं होनी चाहिए। बेटे को आप कहो न, तो सत्तावाली आवाज़ नहीं होनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : हाँ, आपने कहा था कि कोई अपने लिए दरवाज़े बंद कर दे, उससे पहले ही हमें रुक जाना चाहिए । दादाश्री : हाँ, सही बात है। वे दरवाज़े बंद कर दे, उससे पहले हमें रुक जाना चाहिए। तो उसे बंद कर देने पड़े, तब तक अपनी मूर्खता कहलाती है, क्या? ऐसा नहीं होना चाहिए, और सत्तावाली आवाज़ तो कभी भी मेरी निकली ही नहीं। इसलिए सत्तावाली आवाज़ नहीं होनी चाहिए। छोटा हो तब तक सत्तावाली आवाज़ दिखानी पड़ती है। चुप बैठ जा । तब भी मैं तो प्रेम ही दिखलाता हूँ। मैं तो प्रेम से ही बस करना चाहता हूँ। प्रश्नकर्ता: प्रेम में जितना पावर है, उतना सत्ता में नहीं न? ! दादाश्री : ना। पर आपको प्रेम उत्पन्न होता नहीं न? जब तक वह कचरा निकल न जाए! कचरा सब निकालती है या नहीं निकालती ? ३४ प्रेम कैसे अच्छे हार्टवाले ! जो हार्टिली होते हैं न उनके साथ दखल नहीं करना । तुझे उसके साथ अच्छी तरह रहना चाहिए। बुद्धिवाले के साथ दखल करना, करना हो तो । पौधा बोया हो तो, आपको उसे डाँटते नहीं रहना चाहिए कि देख तू टेढ़ा मत होना, फूल बड़े लाना। हमें उसे खाद और पानी देते रहना है। यदि गुलाब का पौधा इतना सब काम करता है, ये बच्चे तो मनुष्य हैं और माँ-बाप पीटते भी हैं, मारते भी है। हमेशा प्रेम से ही सुधरती है दुनिया । उसके अलावा दूसरा कोई उपाय ही नहीं है उसके लिए। यदि धाक से सुधरता हो न, तो यह गवर्नमेन्ट डेमोक्रेसी... सरकार लोकतंत्र उड़ा दे और जो कोई गुनाह करे, उसे जेल में डाल दे और फांसी कर दे। प्रेम से ही सुधरता है जगत् । प्रश्नकर्ता: कईबार सामनेवाला व्यक्ति, हम प्रेम करते हैं फिर भी समझ नहीं सकता। दादाश्री : फिर हमें क्या करना चाहिए वहाँ ? सींग मारें? प्रश्नकर्ता: पता नहीं, क्या करें फिर? दादाश्री : ना, सींग मारते हैं फिर फिर हम भी सींग मारें तब वह भी सींग मारता है, फिर शुरू लड़ाई। जीवन क्लेशित हो जाता है फिर । प्रश्नकर्ता: तो ऐसे संयोग में हमें किस तरह समता रखनी चाहिए? ऐसा तो हमें हो जाता है तो वहाँ पर किस तरह रहना चाहिए? समझ में नहीं आता कि तब क्या करें? दादाश्री : क्या हो जाए तो? प्रश्नकर्ता: हम प्रेम रखें और सामनेवाला व्यक्ति नहीं समझे, अपना प्रेम समझे नहीं, तो हमें क्या करना फिर ? दादाश्री : क्या करना है? शांत रहना है हमें शांत रहना, दूसरा क्या करें हम उसे? क्या मारें उसे?

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