Book Title: Prem
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 32
________________ प्रेम दादाश्री : क्या होता है वह देखना है। प्रश्नकर्ता : उदाहरण के तौर पर बेटा दूसरे शहर में पढ़ने गया। और एयरपोर्ट पर माँ और बाप दोनों गए, और माँ की आँख में से आँसू गिरे पर बाप रोया नहीं। इसलिए तू कठोर पत्थर जैसा है, कहते हैं। दादाश्री : ना, नहीं होती लागणी ऐसी। दूसरे शहर जाता हो तो क्या? उसकी आँख में से आँसू गिरें तो उसे डाँटना चाहिए कि इस तरह से ढीली कब तक रहेगी मोक्ष में जाना है तो! प्रश्नकर्ता : ना, यानी ऐसा कि यदि लागणी न हो तो उतना वह व्यक्ति कठोर हो जाता है। वैसा लागणी बिना का मनुष्य बहुत कठोर होता प्रेम में इमोशनलपन नहीं प्रश्नकर्ता : यह प्रेमस्वरूप जो है, वह भी कहलाता है कि हृदय में से आता है और इमोशनलपन भी हृदय में से ही आता है न? दादाश्री : ना, वह प्रेम नहीं है। प्रेम तो शुद्ध प्रेम होना चाहिए। ये ट्रेन में सब लोग बैठे हैं और ट्रेन इमोशनल हो जाए तो क्या हो? प्रश्नकर्ता : गड़बड़ हो जाए। एक्सिडेन्ट हो जाए। दादाश्री : लोग मर जाएँ। इसी तरह ये मनुष्य इमोशनल होते हैं तब अंदर इतने सारे जीव मर जाते हैं और उसकी जिम्मेदारी खुद के सिर पर आती है। अनेक प्रकार की ऐसी जिम्मेदारियाँ आती हैं, इमोशनल हो जाने से। प्रश्नकर्ता : बगैर इमोशन का मनुष्य पत्थर जैसा नहीं हो जाएगा? दादाश्री : मैं इमोशन बिना का हूँ, तो पत्थर जैसा लगता हूँ? बिलकुल इमोशन नहीं है मुझमें । इमोशनवाला मिकेनिकल हो जाता है। पर मोशनवाला तो मिकेनिकल होता नहीं न! प्रश्नकर्ता : पर यदि खद का सेल्फ रियलाइज नहीं हआ हो तो फिर ये इमोशन बगैर का मनुष्य पत्थर जैसा ही लगेगा न? दादाश्री : वह होता ही नहीं है। ऐसा होता ही नहीं न! ऐसा कभी होता ही नहीं। नहीं तो फिर उसे मेन्टल में ले जाते हैं। पर वे मेन्टल भी सब इमोशनल ही होते हैं। पूरा जगत् ही इमोशनल है। अश्रु से व्यक्त, वह नहीं सच्ची लागणी प्रश्नकर्ता : संसार में रहने के लिए लागणी (भावुकतावाला प्रेम, लगाव) की ज़रूरत है। लागणी प्रदर्शित करनी ही पड़ती है। लागणी प्रदर्शित न करो तो मूढ कहते हैं। अब ज्ञान मिलता है, ज्ञान की समझ उतरती है, फिर लागणी उतनी प्रदर्शित नहीं होती। अब करनी चाहिए व्यवहार में? दादाश्री : लागणी तो जिसे आँख में आँसू नहीं आते उसकी सच्ची है, और आपकी झूठी लागणी है। आपकी दिखावे की लागणी है और उनकी सच्ची लागणी है। सच्ची लागणी हार्टिली होती है। वह सब गलत और उल्टा मान बैठे हैं। लागणी कोई जबरदस्ती होती नहीं है। वह तो नैचुरल गिफ्ट है। ऐसे कहते हैं कि कठोर पत्थर जैसा है तो लागणी उत्पन्न होती हो तो भी बंद हो जाए। वह कोई रोना और फिर तुरन्त भूल जाना, वह लागणी कहलाती नहीं है। लागणी तो रोना भी नहीं और याद रहना, उसका नाम लागणी कहलाता है। लागणीवाले तो हम भी हैं, कभी भी रोते नहीं, पर फिर भी सबके लिए लागणी कायम की है। क्योंकि जितने अधिक मिलें, उतने तो रोज़ हमारे ज्ञान में आते ही हैं सभी। प्रश्नकर्ता : माँ-बाप खुद के बालकों के लिए जिस प्रकार लागणी व्यक्त करते हैं, तो बहुत बार लगता है कि खूब प्रदर्शित करते हैं। दादाश्री : वह इमोशनल ही है सारा। कम बतानेवाला भी इमोशनल कहलाता है। नॉर्मल होना चाहिए। नॉर्मल यानी खाली ड्रामेटिक। ड्रामे की स्त्री के साथ ड्रामा करना, वह असल, एक्जेक्ट। लोग ऐसा समझते हैं कि

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