Book Title: Prem Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 1
________________ शुद्ध प्रेम स्वरुप, वही परमात्मा 'ज्ञानी पुरुष' का शुद्ध प्रेम जो दिखता है, ऐसे खुला दिखता है, वही परमात्मा है। परमात्मा, वह दूसरी कोई वस्तु ही नहीं है। शुद्ध प्रेम जो दिखता है जो बढ़ता नहीं, घटता नहीं, एक समान ही रहा करता है, उसका नाम परमात्मा, उघाड़ेखुल्ले परमात्मा ! और ज्ञान, वह सूक्ष्म परमात्मा है, वह समझने में देर लगेगी। इसलिए परमात्मा बाहर ढूंढने नहीं जाना है। बाहर तो आसक्ति है सारी । 09 - दादाश्री 9788189 933630 दादा भगवान कथित प्रेमPage Navigation
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