Book Title: Prem
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 26
________________ प्रेम पति हुआ मतलब आसक्त, बाप हुआ मतलब आसक्त !! प्रश्नकर्ता: तो संयोगों का असर न हो वह सच्ची अनासक्ति है ? दादाश्री ना, अहंकार खतम होने के बाद अनासक्त होता है मतलब अहंकार और ममता दोनों जाएँ, तब अनासक्ति! वो ऐसा कोई होता नहीं । ४१ प्रश्नकर्ता : यानी यह सब करें, पर उसमें आसक्ति नहीं होनी चाहिए, कर्म लेपायमान नहीं होने चाहिए... दादाश्री : पर आसक्ति लोगों को रहती ही है, स्वाभाविक रूप से । क्योंकि उसकी खुद की मूल भूल नहीं गई। रूटकॉज़ जाना चाहिए । रूटकॉज़ क्या है? तो यह उसे 'मैं चंदूभाई हूँ' ऐसी बिलीफ़ बैठ गई है। इसलिए चंदूभाई के लिए कोई कहे कि 'चंदूभाई को ऐसा किया जा रहा है, ऐसा नुकसान किया है' ऐसा-वैसा चंदूभाई पर आरोप लगाया जाए तो 'वे' गुस्से हो जाते हैं, 'उसको' खुद की वीकनेस खड़ी हो जाती है। तो यह रूकॉज़ है, भूल बड़ी यह है। दूसरी सभी भूल हैं ही नहीं । भूल मूल में यही है कि 'आप' जो हो वह जानते नहीं और नहीं वैसा आरोप करते हो। लोगों ने नाम दिया, वह तो पहचानने का साधन है कि, 'भाई, ये चंदूभाई और इन्कमटैक्स ऑफिसर।' वह सब पहचानने का साधन है। ये इस स्त्री के पति वह भी पहचानने का साधन है। पर 'खुद असल में कौन है?' वह जानते नहीं, उसकी ही यह सब मुश्किल है न? प्रश्नकर्ता: अंतिम मुश्किल तो वहीं पर है न? दादाश्री : यानी यह रूटकॉज़ है। उस रूटकॉज़ को तोड़ा जाए तो काम हो जाए। यह अच्छा-बुरा वह बुद्धि के अधीन है। अब बुद्धि का धंधा क्या है ? जहाँ जाए वहाँ प्रोफिट और लोस देखती है। बुद्धि ज्यादा काम नहीं कर सकती, प्रोफिट और लोस के अलावा । अब उससे दूर हो जाओ । अनासक्त योग रखो। आत्मा का स्वभाव कैसा है? अनासक्त स्वरूप है। ४२ प्रेम खुद का स्वभाव ऐसा है तू भी स्वभाव से अनासक्त हो जा। अब जैसा स्वभाव आत्मा का है, वैसा स्वभाव हम करें, तब एकाकार हो जाएँ, फिर वह कुछ अलग है ही नहीं। स्वभाव ही बदलना है। अब हम आसक्ति रखें और भगवान जैसे हो जाएँ, वह किस तरह होगा? वह अनासक्त और आसक्ति के बीच मेल किस तरह हो? अपने में क्रोध हो और फिर भगवान से मिलाप किस तरह हो? भगवान में जो धातु है, वह धातुरूप तू हो जा। जो सनातन है, वही मोक्ष है। सनातन मतलब निरंतर निरंतर रहता है, वही मोक्ष है। करने गया क्या और हो गया क्या ? !! प्रश्नकर्ता: दादा, आप किस तरह अनासक्त हुए? दादाश्री : सब अपने आप बट नैचरल प्रकट हो गया । यह मुझे कुछ पता नहीं पड़ता कि किस तरह हुआ यह ! प्रश्नकर्ता: पर अब तो आपको पता चलता है न? वे सोपान हमें कहिए न । दादाश्री : मैं कुछ करने गया नहीं था, कुछ हुआ नहीं। मैं करने गया क्या और हो गया क्या?! मैं तो इतनी सी खीर बनाने गया था, दूध में चावल डालकर पर यह तो अमृत बन गया !! वह पूर्व का सामान सारा इकट्ठा हो गया था। मुझे ऐसा ज़रूर था कि अंदर अपने पास कुछ है, इतना ज़रूर मालूम था। उसकी जरा घेमराजी (खुद के सामने दूसरों को तुच्छ समझना ) रहा करती थी। प्रश्नकर्ता : यानी अनासक्त आप जिस तरीके से हुए तो मुझे ऐसा हुआ कि उस तरीके का वर्णन करोगे, तो उस तरीके का मुझे समझ में आएगा। दादाश्री : ऐसा है, यह 'ज्ञान' लिया और हमारी आज्ञा में रहे, वे अनासक्त कहलाते हैं। फिर भले ही वह खाता-पीता हो या काला कोट

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