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४] श्रीप्रवचनसारटीका । चादो चारया " इत्यादि पांचवें, स्थलमें सूत्र छः हैं । इस तरह २१ इकीम गाथाओंमें पांच स्थलोंसे पहले अन्तर अधिकारमें समुदाय पातनिका है।
पहलो गाथाकी उत्थानिका-आगे आचार्य निकटभव्यः जीवोंको चारित्रमें प्रेरित करते हैं।
गाथाएवं पणमिय सिद्धे जिणवरवसहे पुणो पुणो समणे । पडिवज्जद सामण जदि इच्छदि दुश्खपरिमोक्ख ॥ १ ।।
संस्कृतछायाएवं प्रणम्य सिद्धान् जिनवरखुषमान पुनः पुनः श्रमणान् ।। प्रतिपद्यतां श्रामण्यं यदीच्छति दुःखपरिमोक्षम् ॥ १॥
अन्वय सहित सामान्यार्थः-(जदि) जो (दुक्खपरिमोक्ख, दुःखोंसे छुटकारा (इच्छदि) यह आत्मा चाहता है तो (एवं) ऊपर कहे हुए अनुसार (सिद्धे) सिद्धोंको, (जिणवरबसहे) जिनेन्द्रोंको, (समणे) और साधुओंको (पुणो पुणो) वारंवार (पणमिय) नमस्कार करके (सामण्णं) मुनिपनेको (पडिवजद) स्वीकार करे ।
विशेषार्थ-यदि कोई आत्मा संसारके दुःखोंसे मुक्ति चाहता. है तो उसको उचित है कि वह पहले बहे प्रमाण जैसा कि "एस सुरासुर मणुसिंद" इत्यादि पांच गाथाओंमें दुःखसे मुक्तिके इच्छक मुझने पंच परमेष्टीको नमस्कार करके चारित्रको धारण किया है अथवा दूसरे पूर्वमें कहे हुए भव्योंने चारित्र स्वीकार किया है इसी तरह वह भी पहले अंजन पादुका आदि लौकिक सिद्धियोंसे विलक्षण अपने आत्माकी प्राप्तिरूप सिद्धिके धारी सिद्धोंको, जिनेंद्रोंमें