Book Title: Pratikramana Sutra Part 1
Author(s): Nirvansagar
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 206
________________ २२. पुक्खर वर- दीवड्ढे सूत्र १४३ सूत्र विभाग खंड और अर्ध पुष्कर-वर द्वीप में भी हैं. इन पैंतीस क्षेत्रों में से पाँच भरत, पाँच ऐरावत और पाँच महाविदेह [उत्तर कुरु और देव कुरु को छोड़कर] क्षेत्र- ये कुल पंद्रह क्षेत्र कर्म भूमि [ जहाँ मनुष्यों को अपनी आजीविका के लिये श्रम करना पड़ता है.] हैं. शेष पाँच हैमवत, पाँच हरि, पाँच रम्यक् पाँच हैरण्यवत एवं पाँच देव कुरु, पाँच उत्तर कुरु [पाँच महाविदेह में के] क्षेत्र- कुल तीस क्षेत्र- अकर्म भूमि [ जहाँ मनुष्यों को अपनी आजीविका के लिये श्रम नहीं करना पड़ता है.] हैं. श्रुत ज्ञान = तीर्थंकर भगवान से गणधर भगवंतों द्वारा सुनकर प्राप्त किया हुआ और शास्त्र रूप रचा हुआ ज्ञान, सिद्धांत या प्रवचन. सिद्ध जिन मत :- केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद तीर्थकर द्वारा अर्थ से प्ररूपित और नय और प्रमाणों द्वारा प्रस्थापित [ प्रतिष्ठित ] एवं कस शुद्धि, छेद शुद्धि और ताप शुद्धि से प्रख्यात गणिपिटक (बारह अंग ] रूप मत / दर्शन / धर्म. नय:- पदार्थ को किसी भी एक दृष्टि से देखना / समझना. प्रमाण :- पदार्थ को सर्व दृष्टि से देखना / समझना. प्रतिक्रमण सूत्र सह विवेचन भाग १ Jain Education International sūtra part 22. pukkhara-vara-divaddhe sutra fourteen] regions of same name in dhataki khanda and half puskara-vara dvipa. Out of these thirty five regions, the regions of five bharata, five airavata and five mahāvideha [excluding uttara kuru and deva kuru]-- in all fifteen regions are the lands of activities [where men have to work for their livelihood]. Remaining regions of five haimavata, five hari, five ramyak, five hairanyavata and five deva kuru, five uttara kuru [from five mahāvideha] -- in all thirty | regions are the land of inactivity [where men need not work for there livelihood.]. śruta jñāna = Knowledge, doctrines or discourses secured by the ganadhara bhagavantas from the tirthankara bhagavānas by listening and composed in the form of scriptures. siddha jina mata [proved jina (Jain) doctrines] :- Doctrines / philosophy / religion in the form of ganipitaka [twelve anga s] preached in meaning by the tirthankara after acquiring kevala jñāna and well established by nayas and pramāņas and well proved by kasa suddhi, cheda śuddhi and tāpa śuddhi [perfectness in kasa, cheda, and tāpal. naya :- To observe / understand a matter in any of one angle. pramāna: To observe / understand a matter in all angles. 143 For Private & Personal Use Only Pratikramaņa Sūtra With Explanation - Part - 1 www.jainelibrary.org.

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