Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 3
________________ -- SHRESTERROORKERARMSmritiMINowtwarenmerammawwmanman- ...... ..... "अथ पंवठी यंत्र गर्भित चतविशति जिम स्तोत्र" .. .. ......... यद धर्म जिनं सदा सुखकर, चन्द्रप्र नाभिजा' ! श्रीमदीर मिश्वर जयकर, कुन्थु च भान्ति जिनम् ।। भुषित श्रीफलदारयनन्त मुनियं, यन्दै सुपार्थं विभुम् । श्रीमन्धनपारमय थ सुखद. पाश्च मनोऽभीष्टदम् ।।१।। श्रीमियर सुवा व विमलं, पापभं सांवरम् । सेवे संभवकर नमि जिर्न, मल्लिम् जयानन्दनम् ॥ वन्दे भी जिनश्रीतलं च सुविधं, संयमित भुक्तिदम् । श्रीसंघपतपशवप्रतितनं, साक्षादरं ष्णवम् ॥26 स्तोत्रं सर्व जिनेश्वर भिगतं, तेषुमतं वरम् । एतत संगत यंत्र एथविजयो, स्यं लिखित्वा अभैः ।। पावें संधियमान एव सुखदी, मांगल्यमाला प्रदर्श। यामागे थनिता नरा स्तदितरे कुर्वन्तु यं भावतः 131t प्रस्थान टिथति वादकरणं, सणादि संदर्भने वश्याय सुत हेतयं धन कृते. रक्षन्तु पाव सा ॥ माणे संविषमेदवाग्नि ग्वलिते. चिन्तादिनिर्मात्रने । यतोऽयं मुनि नेव सिंह कथिना, संग्रन्धित सौख्यदः ||४|| उपर्युक्त स्लोल के पढ़ते समय जो-जो तीर्थकर या नाबर आता है उसे उस संख्या को रखने से E५ या यंत तयार हो जाता है । यथा +0000 १४ । २२ २०१३ Ram *आदिनाथ स्वामी ४ वासपण्य जी श्री सुमतिनाथ जी श्री श्रेयांसनाथ जी श्री अभिनन्दन जी

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