Book Title: Prashnavyakaranasutram
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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१ आश्रवे वधकरध्यप्रयोजनानि
सू०३
प्रश्नव्याक
णिगतगुणानां हिंसकजीवचारित्रगुणानां वा विराधना-खण्डना इत्यर्थः, इतिशब्द उपदर्शने, अपिचेति र० श्रीअ-
समुच्चये इति ३० । 'तस्से'त्यादि प्राणिवधनाम्नां निगमनवाक्यं 'एवमाईणि त्ति आदिशब्दोऽत्र प्रकारार्थी
समुच्चय इात. भयदेव०यदाह-"सामीप्येऽथ व्यवस्थायां, प्रकारेऽवयवे तथा । चतुर्वर्थेषु मेधावी, आदिशब्दं तु लक्षये-॥१॥" वृत्तिः 18|दिति । तान्येवमादीनि-एवंप्रकाराण्युक्तस्वरूपाणीत्यर्थः नामान्येव नामधेयानि भवन्ति, त्रिंशत्प्राणिवधस्य
कलुषस्य-पापस्य कटुकफलदेशकानि-असुन्दरकार्योपदर्शकानि यथार्थत्वात्तेषामिति । तदियता यन्नामेत्युक्तमथ गाथोक्तद्वारनिर्देशक्रमागतं यथा च कृत इत्येतदुपदर्शयति, तत्र च प्राणिवधकारणप्रकारे प्राणिवधकर्तृणामसंयतत्त्वादयो धर्मा जलचरादयो वध्याः तथाविधमांसादीनि प्रयोजनानि च अवतरन्ति एतन्निष्पन्नत्वात् प्राणवधप्रकारस्येति तानि क्रमेण दर्शयितुमाह
तं च पुण करेंति केई पावा असंजया अविरया अणियपरिणामदुप्पयोगी पाणवहं भयंकरं बहुविहं बहुप्पगारं परदुक्खुप्पायणप्पसत्ता इमेहिं तसथावरेहिं जीवेहिं पडिणिविट्ठा, किं ते?, पाठीणतिमितिमिगिलअणेगझसविविहजातिमंदुक्कदुविहकच्छभणकमगरदुविहगाहादिलिवेढयमंदुयसीमागारपुलुयसुंसुमारबहुप्पगाराजलयरविहाणाकते य एवमादी, कुरंगरुरुसरभचमरसंवरहुरब्भससयपसयगोणसरोहियहयगयखरकरभखग्गवानरगवयविगसियालकोलमज्जारकोलसुणकसिरियंदलगावत्तकोकंतियगोकण्णमियमहिसविग्घछगलदीवियासाणतरच्छ अच्छन्भल्लस टूलसीहचिल्ललचउप्पयविहाणाकए य एवमादी, अयगरगोणसवराहिम
CACROCHAEOLOGICCCCESCA
1000-NCC6CASARAMMAR
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