Book Title: Pramanmimansa Author(s): Hemchandracharya, Sukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad View full book textPage 3
________________ Anitiandialidu हो कान्द n lsdom8RNITmmmmmitim पुज्य पं. सुखलालजी संघवी द्वारा सम्पावित प्रमाणमीमांसा का दूसरा संस्करण प्रकाशित हो रहा है हान कर बानन्द इबा । भारतीय बर्शन के अन्यों में जिस प्रकार सुलनात्मक संस्कृत टिप्पणों के साथ "सन्मति प्रकरण" प्रकाशित हुआ वह संस्कृत ग्रन्थों के सम्पादन : की मई दिशा की और संकेत करता था। उसी प्रकार यह प्रमाणमीमांसा भी हिन्दी टिप्पणों के साथ जो प्रकाशित हुई वह भी एक नई दिशा बरसाने वाला अग्ध था। उसमें प्रतिपादित विषयों की अम्बार्शनिक अन्यों के साथ तुलना तो की ही गई पी, उपरांत विकार विकास का इतिहास भी प्रदर्शित था। किन्तु उसमें जो एक कमी थी वह यह कि पैस बर्थन का आगमगत रूप विस्तार से प्रदर्शित नहीं हुआ था। उस कमी की पूर्ति करने का प्रयास मैंने मायावसार वानिक पति को प्रस्तावना लिखकर किया था । वह प्रस्तावना "बागमयुम का जैन दर्शन" नाम से प्रकाशित भी हुई है। किन्तु उसमें भी बाममों का ररीकरण करके जैन दर्शन के विकासक्रम को प्रदर्शित करने का प्रयत्म नहीं है । इस कमी को दूर करने के लिए मैंने "जैन दर्शन का आदिकाल लिया और उसे . मध्य और उत्तर काल लिखकर पूर्ण करने का मेरा इरादा था। किन्तु अब यह कार्य मुझसे होने वाला नहीं। मई पिड़ी से मेरी प्रार्थना है कि इस कार्य को पूरा करें ।। प्रस्तुत प्रमाणभीमोसा के प्रकाशित होने के बाद उसके हिन्दी और अंग्रेजी में अनुवाद प्रकाशित हए हैं। और उसकी प्रस्तावमा और टिप्पणों का अंग्रेजी अनुवाद फलकसा से “एडवान्स स्टबीना इन इन्डियन शोषिक एण्ड मेटाफिसीक्स" के नाम से प्रकाशित हुआ है। मैं यहाँ प्रमाणमीमांसा की दूसरी बाति के प्रकाशन करने का पुज्य गणिवयं शीलचन्द्र विषयजीने जो प्रयास किया उसकी प्रशंसा करता है। यह इस लिए कि अभी तक यह प्रवृति देखी गई है कि पूज्य पंडित सुखलालपी के सम्पादित अन्धों में से टिप्पण निकाल कर कुछ विद्वानों ने ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं। यहाँ ऐसा नहीं हुआ। ३।१।८८ -~-কষুদ্ধ পাখিPage Navigation
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