Book Title: Prakrit Bhasha Udgam Vikas aur Bhed Prabhed
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf

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Page 10
________________ KAANAIL.JANABANKERAJ.AAJASANA.AAR.. .RIAMRAPAL :. दर १२ प्राकृत भाषा और साहित्य आचार्य हेमचन्द्र के पूर्ववर्ती महान् नैयायिक एवं कवि आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने भी इसी प्रकार उल्लेख किया है अकृत्रिम स्वादुपदैर्जनं जिनेन्द्रः साक्षादिव पासि भाषितैः ।' __ आचार्य हेमचन्द्र ने इसी परम्परा का अनुसरण किया है । यहाँ तक कि आचार्य सिद्धसेन दिवाकर के शब्दों को भी यथावत् रूप में स्वीकार किया है। रुद्रटकृत काव्यालंकार के व्याख्याता, सुप्रसिद्ध अलंकारशास्त्री जैन विद्वान नमि साध ने प्राकृत की व्याख्या करते हुए उसे सब भाषाओं का मूल बताया। पहले मानव की आदिभाषा के सम्बन्ध में विचार करते समय नमि साधु के विचारों को उपस्थित किया गया है। उनके अनुसार प्राकृत शब्द पाक+कृतं २ अर्थात् पहले किया हुआ (अति प्राचीन) से बना है। नमि साधु ने अपनी व्याख्या में यह भी उल्लेख किया है कि जिस प्रकार बादल से गिरा हुआ पानी यद्यपि एकरूप होता है, पर भूमि के भेद से वह अनेक रूपों में परिवर्तित हो जाता है, उसी प्रकार वह (प्राकृतभाषा) अनेक रूपों में परिणत हो जाती है। .........."वही पाणिनि आदि के व्याकरण के नियमों से संस्कार पाकर सम्मार्जित होकर संस्कृत कहलाती है। नमि साधु उक्त विश्लेषण के संदर्भ में एक बात की और चर्चा करते हैं, जो काफी महत्त्वपूर्ण है। वे कहते हैं कि मूल ग्रंथकार आचार्य रुद्रट ने अपने विवेचनक्रम के मध्य प्राकृत का पहले तथा संस्कृत आदि का बाद में निर्देश किया है। यह स्पष्ट है, यों कहकर नमि साधु इस बात पर बल देना चाहते हैं कि प्राकृत पूर्ववर्ती है तथा संस्कृत तत्पश्चाद्वर्ती । नमि साधु के विचार भाषा-विज्ञान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण और मननीय हैं। पूर्वोद्धृत वैयाकरणों तथा काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों के टीकाकारों से ये मेल नहीं खाते । नमि साधु प्राय: इन सभी से पूर्ववर्ती थे । राजशेखर जैसे अजैन विद्वानों ने भी इसी बात की ओर इंगित किया है। राजशेखर का समय लगभग नौवीं ईसवी माना गया है। बालरामायण का एक प्रसंग है, जहाँ वे लिखते हैं १. द्वात्रिंशद् द्वात्रिशिका १, १८ २. ...... पाक्-पूर्वकृतं प्राकृतं, बालमहिलादिसुबोधं सकलभाषानिबन्धनभूतं वचनमुच्यते । ३. ......."मेघनिर्मुक्त जलमिवैकस्वरूपं तदेव विभेदानाप्नोति ।........"पाणिन्यादि व्याकरणोदितशब्द लक्षणेन संस्करणात् संस्कृतमुच्यते । ......"अतएव शास्त्रकृता प्राकृतमादौ निदिष्टं तदनु संस्कृतादीनि । रुद्रट का विवेचन प्राकृत-संस्कृत-मागध-पिशाचभाषाश्च शौरसेनी च। षष्ठोऽत्र -भूरिभेदो देशमशेषादपभ्रंशः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .

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