Book Title: Pragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 12
________________ स्वर्गीय भूपतराय हीराचन्द कामाणी भव्यात्मा के प्रति, उनके सत्कर्म के प्रति प्रमोदभाव एवं जन-जन में सद्भाव का प्रचार हो, इस भाव से पिताश्री भूपतभाई के प्रति ज्ञानवर्द्विनी श्रद्धांजली अर्पित की है। यह एक आदर्श प्रस्तुत किया है। ___ 12/5/1925 को अमरेली सौराष्ट्र निवासी श्री भूपतभाई कामाणी बचपन में ही माता पिता तथा चार बहनों के साथ बंगाल आये और कलकत्ता को अपना कर्मक्षेत्र बनाया। पिता के स्वर्गवास के बाद 16 वर्ष की उमर में व्यवसाय संभाला और माताश्री कंकुबेन के धार्मिक, सामाजिक सेवा के संस्कार इतने प्रबल थे कि 19 वर्ष में समाजसेवा का व्रत धारण कर लिया। धर्मपत्नी श्री सविता बेन ने पूरा साथ दिया। 1936 में महात्मा गांधी से सम्पर्क क्या हुआ कि जीवन ही बदल गया। 1947 के हिन्दु-मुस्लिम दंगो में जहाँ दोनो समुदाय के लोग मरने मारने को तत्पर थे वहां शक्ति-संपन्न मजबूत इरादे वाले भूपतभाई अपने साथियों के साथ रातदिन ट्रको में उन्हें सुरक्षित स्थान पर लाकर भोजन, वस्त्र, आवास आदि की व्यवस्था महिनों तक प्रदान करायी। परम्पूज्य गुरूदेव एवं आचार्य श्री जी के प्रति अनन्य श्रद्धाभक्ति तथा उनके क्रान्तिकारी विचारों से प्रभावित थे। अतः वे किसी पन्थ, सम्प्रदाय में आबद्व नहीं थे। विभिन्न धर्मों एवं जातियों द्वारा संचालित अनेक धार्मिक सामाजिक संस्थाओं, विद्यालयों, अस्पतालों एवं सामाजिक कार्यो में महत्वपूर्ण योगदान देकर उन्हें यशस्वी एवं प्रगतिशील बनाया। गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी जैन समाज, बंगाल का प्रबुद्ध वर्ग इनकी सेवाओं की मुक्त मन से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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