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हृदय उदगार हे नाथ ! अनादिकालथी अनंत भवोमां रखडी रखडी आपने शरणे आवी छु । आपनी कृपाथी मने मनुष्य जन्म अने रत्नत्रयीनी सुन्दर आराधना मली छे। हवे मारी एक ज इच्छा छे, समाधि मरणनी। मारा मृत्यु वखते हुँ पूर्ण समाधि भावमां होउं, गुरु खोळे मारु मस्तक होय। ते मने निर्यामणा करावता होय, में सर्व परभावनो त्याग कर्यो होय, चतुर्विध संघनी हाजरीमां नवकार मंत्रनी धून चालु होय। मारु चित्त ए परमतत्त्वना ध्यानमां परोवायेलुं होय, बस आ रीते समाधि भावमां देह छोडी भवांतरमा महाविदेह क्षेत्रमा ज्यां श्री सीमंधर स्वामी विचरता होय तेनी निकटमां धर्मी माता-पिताने त्या मारो जन्म थाय, जन्मतां ज नवकार मंत्र संभलावे तेवी माता मले, त्रण वरसनी उमरे मने सीमंधरस्वामी दादानी देशना सांभलवा लई जाय, चार वर्षनी वये अग्यार अंग शास्त्रोनो अभ्यास करी पूर्ण वैराग्यमय जीवन जीवी आठ वरसनी उंमर थतां श्री सीमंधर स्वामिनी हस्ते दीक्षा अपावे तेवा माता-पिता मलजो, निरतिचार पणे शुद्ध चारित्र पाळी सवि जीव करु शासनरसीनी उत्कृष्ट कोटीनी भावना जागता नव वरसनी उमरे कैवलज्ञान पामुं। भव्य जीवोने बोध दईने संसारथी तारनारी बर्नु. हुं पोते अनादिकालथी अनंता जीवोने त्रास-दुःख अने मरण आपवामां निमित्त बनी रही छु। तेमांथी छुटी सर्वेने सुख-शान्ति आपनारी बनुं अने मारो मोक्ष थाय ए द्वारा मारा निमित्ते एक जीव पण निगोदमांथी छुटो थाय एवी भावना थाय छे। हे नाथ! आपे मने निगोदमांथी काढी, त्यारनुं मारा माथे जे ऋण छे ते हुं अदा नथी करी शकी एवी पापी अधमभाव अने विषय-वासनामां गलाइब हं डुबेली छं। एमांथी सौने छोडाववा माटे आपनो दृढ संकल्प हतो ने! तो मारो आ भव आपनो संकल्प पूरो करनारो बनी रहो।
. हे नाथ! हे नाथ! हे नाथ! हे गुरुदेव! आप ज्यां हो त्यांथी एवी कृपा वरसावो के आपनी सहायथी आ भवमां पण