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आ द्वितीयसंग्रहमा द्रव्य श्रावकना एकवीस गुणनी पूजा, भावश्रावकना सत्तर गुणनी पूजा, बार भावनानी पूजा, महावीरपरमेश्वर पंचकल्याणक पूना, पंचज्ञान पूजा, मंगल पूजा, जंगमस्थावर तीर्थपूजा अने अढार पापनिवारक पूजा के जे अत्यारसुधी रचायेली नहोती तेवी पूजाओ रचीने विविध चित्तवृत्तिवाळा मनुष्योने माटे खास खोराकरूपे थइ पूजारसिकोने ते निमित्ते ज्ञानवैराग्य पोषणर्नु नवु साधन मळे छे जेथी खास खुशी थवा जेवू छे.
श्रावकधर्मना अधिकारी बनवानेमाटे द्रव्यश्रावकना एकवीश गुणनी पूजा तथा भावश्रावकना अधिकारी बनवाने माटे भावावकना सत्तरगुणनी पूजा खास उपयोगी होइ श्रावकना गुणोमां श्रावकोने उन्नत करवा सरळ अने रसिक भाषामां उपदेशामृत पूर्ण रचना आगळ करवामां मुरिश्रीनी प्रवृत्ति प्रशंसापात्र छे अने आ रचना श्रावकोने स्वत्वनुं सहेलाइथी भान कराक्वा अणमोला साधन रूप छे. आनिमिसे श्रावकोमां किंचित् पण गुणवृद्धिनी सापेक्षदृष्टिए आ पूजाओनी उपयोगिता सिद्ध थाय छे . बारव्रतनी पूजा तथा बार भावनानी पजा पण तेटलीज उपयोगी छे महावीर परमेश्वर कल्याणक पूजा के जेमां ललित भाषामां संक्षेपथी महावीरस्वामीनुं मननीय चरित्र गुंथीने दरेक जैनने स्मरणपटमां अपवाद रहित गोखी राखवा लायक वस्तु रजु कर्यु छे ते जाणीने कोण खुशी नहि थशे ? तेवीज रीते जंगम स्थावर तीर्थपूजामां तमाम तीर्थोनी यादी स्मृतिपटमा सहेजे उपस्थित थवाने सुंदर प्रबंध करेलो छ के जेथी मानवहृदयमां तीर्थभक्ति सदोदित जागृत रही शके अने परीणामे सांसारिक क्लेशोमां निरंतर रचीपची रहेली चित्तवृत्ति क्षणभर पण आत्मानंदन आस्वादन करी दुःखोदधि संसारमा किंचित् विश्रांतिनुं साधन मेळवी शके. पंचज्ञानपूनामां जैनदर्शनमां प्ररूपित पंचज्ञान- स्वरूप आळेखेलुं छे सर्व शुभ कार्यारंभमां विघ्नविनाशन हेतुए अने कल्याण
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