Book Title: Paryushan Ek Aetihasik Samiksha Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf View full book textPage 3
________________ है, उन पर विद्वान एवं जिज्ञासु विचार करते हैं, वास्तविक सत्य को समझने का तटस्थ भाव से, अनाग्रह बुद्धि से प्रयत्न करते हैं। यदि कुछ अस्पष्ट रहता है, तो उस पर विचार चर्चा भी चलाते हैं। उक्त चर्चा को प्रस्तुत करने का मेरा उद्देश्य भी एकमात्र यही था कि निष्पक्ष विचार के प्रकाश में पर्युषण की वास्तविक स्थिति का दर्शन किया जाए, अपने को सांप्रदायिक मान्यताओं के पक्षपात एवं व्यामोह के अंध-आग्रह से मुक्त किया जाए। मैं क्या चाहता हूँ मेरा यह अभीष्ट नहीं है कि पर्युषण के वर्तमान काल को बदला जाए, उसी पुरानी स्थिति में पहुँचा जाए। मैं इतना बेभान नहीं हूँ कि समाज की स्थिति को नहीं समझ सकता होऊँ। आज वापस लौटना एक तरह असंभव ही है। अतः मेरा उद्देश्य तो केवल इतना ही है कि पर्युषण पर्व की इन विभिन्न मान्यताओं को लेकर आए दिन जो विग्रह होते हैं, शान्त जन-मानस क्षुब्ध होते हैं, एक दूसरे पक्ष को शास्त्र विरुद्ध एवं विराधक कहते हैं, यह सब बेतुका आधारहीन संघर्ष . शान्त हो। सब मिलकर एक निर्णय कर लें, और उसका निष्ठा से पालन करें। परम्पराएँ अनादि नहीं हैं, वे पहले भी बदली हैं। और उन बदली हुई परम्पराओं को मान्यता भी मिली है। आज भी क्यों नहीं मान्यता मिल सकती है? दो सावन होने पर एक पक्ष का आग्रह दूसरे सावन में पर्युषण करने का है, और इसके लिए वह शास्त्रों की दुहाई देता फिरता है। दूसरा पक्ष भादवे का आग्रह रखता है और कहता है कि दूसरे सावन में पयुर्षण करना शास्त्र विरुद्ध है, जिनाज्ञाविरुद्ध है। भादवे में ही पर्युषण करो, अन्यथा भगवान् की आज्ञा के विपरीत आचरण करने के कारण अनन्त संसार परिभ्रमण करना पड़ेगा। यही विग्रह दो भादवा होने पर उठ खड़ा होता है। कुछ का आग्रह पहले का है, तो कुछ का दूसरे का! अजीब हालत है! विचारक वर्ग हँसता है, और वह जिस श्रद्धा के नाम पर यह सब हो-हल्ला होता है, उससे दूर होता जाता है। मेरा कहना है कि यह प्रचलित मान्यताओं का आग्रह या कदाग्रह आधारहीन है। प्राचीन ग्रन्थों को आँखों से देखों, वास्तविकता कुछ और ही है। वहाँ तुम्हारी दोनों ही मान्यताओं का कहीं अतापता नहीं है। उस प्राचीन सत्य को आज अपना नहीं सकते हो, तो कम-से कम आज के आग्रह तो छोड़ो, जिनशासन के हित में एक मत होकर किसी एक स्थिति का निर्णय कर लो और उस पर चलो। घ्यर्थ के विग्रह मत खड़े करो। ___108 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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