Book Title: Paryushan Ek Aetihasik Samiksha
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 15
________________ कल्पसूत्र के टीकाकार श्री विनयविजयजी और श्री समयसुन्दर जी ने भी यही अर्थ किया है: “उष् निवासे' इति आगमिको धातुः ‘वस् निवासे' गणसंबंधिको वा।" ___-कल्पलता, व्याख्यान 9 “पज्जोसणाकप्पेति' परि-सामस्त्येन उषणा-वसनं पर्युषणा।" -सुबोधिका, व्याख्यान 9 “वासावास पज्जोसवियाणं'-वर्षाकाले पर्युषितानां-स्थितानाम्।" ___ -कल्पलता, व्या. 9 “वर्षावास चतुर्मासक पर्युषितानां-स्थितानाम्।" -सुबोधिका, व्याख्यान 9 क्या पर्युषण दो हैं, दो काल में हैं? पर्युषण संबंधी मेरे विचारों की चर्चा, बिना मेरे नामोल्लेख के जिनवाणी (मार्च-अप्रैल 70) में हुई है। उसमें मेरे वर्षावास रूप पर्युषण के अपवाद पक्ष को तो स्वीकार किया है, भले ही वह अस्पष्ट शब्दावली में हो, परंतु वर्तमान सांप्रदायिक मान्यता का आग्रह नहीं टूट पाया है, अतः पर्युषण के दो रूप उपस्थित किए हैं, एक, वर्षाकाल में एकत्र रहना, और दूसरा, वार्षिक पर्व (संवत्सरी) और उपसंहार में लिखा है-"इनमें वार्षिक पर्व रूप पर्युषण भाद्रपद शुक्ला पंचमी को होता है, आदि। प्रथम अर्थ में वर्षावास लिया गया है, जिसका जघन्यकाल 70 रात्रि है और उत्कृष्ट काल 4 मास माना गया है।" अपने उक्त मत के पक्ष में कल्पसूत्र की सुबोधा या सुबोधिका-व्याख्या में से एक अंश उद्धृत किया है-“तत्र पर्युषणाशब्देन सामत्स्येन वसनं वार्षिक पर्व हय अपि कथ्यते। तत्र वार्षिक पर्व भाद्रपद सित पञ्चम्याम्।" यह उल्लेख श्री विनयविजयजी का है, जो बहुत उत्तरकालीन 17वीं शती के सुप्रसिद्ध मुनि हैं। यह युग सांप्रदायिक आग्रह का युग था। यही कारण है कि उन्होंने अपने समय में प्रचलित अधिक श्रावण-भाद्रपद मास के द्वंद्व का भी खूब खुलकर खंडन किया है। दो सावण होने पर दूसरे श्रावण में संवत्सरी करने वालों की प्रताड़ना कर के भादवा में ही संवत्सरी करने के अपने पक्ष का बड़े ही घटाटोप से मंडन किया है।10 मैं समझता हूँ, यह विचार तो जिनवाणी को ___ 120 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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