Book Title: Paryushan Ek Aetihasik Samiksha
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 16
________________ मान्य नहीं होगा, क्योंकि उसके अपने अभिमत पक्ष से विपरीत जो है। अस्तु जैसे कि यह अधिक श्रावण-भाद्रपद का मत श्री विनयविजयजी की अपनी संप्रदाय की मान्यता से प्रभावित है, उसी प्रकार वर्षावास और वार्षिक पर्व के रूप में दो पर्युषण और उनके परस्पर विभिन्न काल भी तत्कालीन संप्रदायों की रूढ़ मान्यताओं से ही प्रभावित एवं प्रेरित हैं। क्योंकि निशीथ भाष्य, निशीथ चूर्णि, बृहत्कल्प भाष्य, बृहत्कल्प भाष्य टीका, समवायांग सूत्र की अभयदेव सूरि कृत टीका-इत्यादि अद्यावधि अध्ययन में आए प्राचीन ग्रंथों में, जिनमें कि पर्युषण संबंधी विस्तृत एवं मौलिक चर्चा है, कहीं भी इस प्रकार पर्यषण के दो भेद और उनके दो विभिन्न काल देखने में नहीं आए हैं। यदि ऐसा कुछ होता तो वे महान् श्रुतधर आचार्य अवश्य उल्लेख करते। अतः उनके समक्ष श्री विनय विजयजी की मान्यता को नहीं दिया जा सकता। प्राचीन आचार्यों ने, जिनके अनेक उद्धरण मैं पीछे दे आया हूँ, वर्षावास के साथ ही वार्षिक आलोचना एवं क्षमापना का जिक्र किया है। पर्युषण एक ही है वर्षावास रूप। उसके साथ आलोचना, क्षमापना, कल्पसूत्र वाचन, तप और केशलोच आदि कुछ क्रियाएँ हैं, जो पर्युषण के अंग स्वरूप हैं, साधुसंघ के लिए करणीय हैं। और उक्त सब क्रियाएँ पूर्वनिर्दिष्ट उद्धरणों के अनुसार, प्राचीन आचार्यों ने वर्षावास रूप पर्युषण के साथ ही करनी बताई हैं, उनके लिए भिन्न काल का कोई उल्लेख नहीं है। श्री विनय विजयजी की वार्षिक पर्व वाली बात तो तब प्रामाणिक मानी जाती, जब कि आषाढ पूर्णिमा को वर्षावास बैठता, और उस समय वर्ष पूरा नहीं होता, भादवा में होता, फलतः आषाढ़ पूर्णिमा को वर्षावास-चौमास बैठाकर, वार्षिक आलोचना के लिए सुदीर्घ भादवा का महीना पकड़ा जाता। जैन परंपरा के अनुसार वर्ष आषाढ़ में पूर्ण होता है। यह हम भगवती सूत्र का उद्धरण देकर पीछे सिद्ध कर आए हैं। अतः सिद्ध है कि वार्षिक पर्वरूप पर्युषण भी आषाढ़ पूर्णिमा को ही होता था। श्री विनय विजयजी स्वयं भी एक तरह से, पर्युषण आषाढ़ पूर्णिमा को ही मानते हैं। वार्षिक केशलोच भी पुर्यषण क्रियाकाण्ड का एक महत्त्वपूर्ण अंग है, जिसका पालन आज भी वर्तमान पर्युषण के साथ किया जाता है। कल्पसूत्र की अपनी टीका में विनय विजयजी ने उक्त केशलोच का काल वर्षावास से पूर्व पर्युषण : एक ऐतिहासिक समीक्षा 121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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