Book Title: Paryushan Ek Aetihasik Samiksha
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 20
________________ पाठक देख सकते हैं, कितना अंतर है दोनों में? हिन्दी में है ' 70 दिन रहने पर अर्थात् बाकी रहने पर चातुर्मास पूरा किया'। यह क्या अर्थ है? क्या भादवा सुदी पंचमी को वर्षाकाल चौमास पूरा कर दिया और फिर ग्रामानुग्राम विहार करने लगे? गुजराती में इसके विपरीत अर्थ किया है - बाकीना सित्तेर दिवस पूरा थतां चातुर्मास पूर्ण कर्यं । मूल पाठ में तो ऐसा कुछ नहीं है कि 70 दिन पूर्ण होने पर चौमास पूरा किया। यह अद्भूत अर्थ कहाँ से, मूलसूत्र के किन शब्दों में तैयार किया है? कहीं से भी तो नहीं। यह तो प्रचलित सांप्रदायिक मान्यता की उलझन है। और इस प्रकार की उलझनों में उलझे मुनिराजों से, फिर वे कोई भी क्यों न हों, सत्य की रक्षा का क्या भरोसा किया जा सकता है? यही कारण है कि श्रद्धा के नाम पर शास्त्रों, आगमों या ग्रंथों के सर्वथा असंगत एवं विपरीत अर्थ कर दिए जाते हैं और मुग्ध जनता इन अर्थों की जर्जर लाठी पकड़े अंधकार में ठोकर खाती फिरती है। पूज्य श्री हिन्दी और गुजराती में तो गड़बड़ा गए हैं, किन्तु उन्होंने संस्कृत टीका में आचार्य अभयदेव का ही अनुसरण किया है। प्रायः उसी शब्दावली का प्रयोग किया है। लिखा है 44 'श्रमणो भगवान् महावीरः 'वासाणं' वर्षाणां वर्षाकालस्य 'सवीसइराए मासे वकते' सविंशतिरात्रे मासे व्यतिक्रान्ते पञ्चाशद्दिनेष्वतीतेषु इत्यर्थः, 'सत्तरिएहिं राइदिएहिं सेसेहिं सप्ततौ रात्रिन्दिवेषु सप्ततिदिनेष्ववशिष्टेषु 'वासावासं ' वर्षावासं-वर्षास्वावासस्तं वर्षावासं वर्षाकालावस्थितिमित्यर्थः, 'पज्जोसवेइ' परिवसति । " उपर्युक्त संस्कृत टीका को स्वयं ध्यान से पढ़िए, या किसी संस्कृतज्ञ विद्वान् से पढ़वा लीजिए, पूज्य श्री घासीलालजी का हृदय स्पष्ट हो जाएगा। 'वासावासं' का अर्थ वर्षावास किया है, जिसका स्पष्टीकरण उन्हीं शब्दों में है-' वर्षाकालावस्थिति' अर्थात् वर्षाकाल में अवस्थिति, और पज्जोसवेइ का अर्थ है - परिवसति । टीका में एक शब्द भी आज के तथाकथित वार्षिक पर्व का नहीं है। समवायांग सूत्र के उक्त 'समणे भगवं महावीरं' के मूल पाठ का, जिसके संबंध में जिनवाणी और सम्यग्दर्शन का यह उद्घोष है कि यह वार्षिक पर्वरूप पर्युषण - संबंधी पाठ है, देखिए, जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर ( सं 1995) से प्रकाशित समवायांग के गुजराती अनुवाद में क्या अर्थ किया है? पर्युषण : एक ऐतिहासिक समीक्षा 125 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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