Book Title: Paryant Aradhana Sutra
Author(s): Somchandrasuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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॥प्रमादपरिहारकुलकम् ॥
दुरके सुखे सपा मोहे अमोहे जिणसासणं । तेसिं कयपणामोऽहं संबोहं अप्पणो करे ॥१॥ दसहि चुल्लगाइहिं . दिडतेहिं कयाइओ। संसरंता भवे सत्ता पावंति मणुयत्तणं ॥२॥ नरत्त आरियं खितं खित्तेवि विउलं कुलं । कुलेवि उत्तमा जाई जाईए स्वसंपया ॥३॥ रूवेवि हु अरोगत्तं अरोगे चिरजीवियं । हियाहियं चरित्ताणं जीविए खलु दुष्टहं ॥४॥ सद्धम्मसवणं तंमि सवणे धारणं तहा । धारणे सद्दहाणं च सदहाणे वि संजमे ॥५॥ एवं रे जीव दुल्लंभ वारसंगाण संपयं । संपयं पाविऊणेह पमाओ नेव जुञ्जए ॥ ६॥ पमाओ अ जिणिदेहिं अहा परिवजिओ। ... अन्नाणं संसओ वेव मिच्छानाणं तहेव य. ॥७॥

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