Book Title: Parmatma Darshan Author(s): Buddhisagar Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पयानो हतो, ते रीतिने अनुसरी उमास्वाति पाचक, सिरसेन दिवाकरसूरि, हरिभद्रसूरि, श्री हेमचंद्र आचार्य श्री अभयदेवसरि यशोविजय उपाध्याय,आदि धर्मधुरंधर आचार्योए. अनेक मनुष्योना उपकारार्थे. संस्कृत भाषामा तथा मागधी प्राकृतादि भाषामा उपदेश दीधो छे तथा तेवा ग्रंथो बनाव्या छे. पूर्वोक्त आचार्योना ग्रंथो सूत्रोनी पेठे माननीय पूजनीय गणाय छे. श्री हेमचंद्र पश्चात् लोकोनी स्थिति विद्या संबंधी घटवा लागी. लोको मागधी अने संस्कृतमां पण अल्प समजवा लाग्या. त्यारे आचार्योए जमानाने अनुसरी चालती गुर्जर भाषा आदिमां रासो वगेरे बनाववा लाग्या सं १३२७ नी सालमा सात क्षेत्रनो रास बन्यो छे. आ सात क्षेत्रनो गुर्जर भाषानो रास छपावी सिद्ध कर्यु छ के जैनोमाथी गुर्जर भाषा मुख्यताए प्रकाशी छे आ रास भजन संग्रह चोथा भागमा छपाब्यो छे. ते पहेला पण गुर्जर भाषामां जैनाचार्योए काव्य लख्यां होय एम संभव थाय छे अने ते माटे शोध चालेछे. प्रथम तोगुर्जर भाषामांपद्य तरीके रचनाकरी उपदेश आप्यो पश्चात् गधमां पण ग्रंथ बनावी उपदेश देवा प्रारंभ कर्यो. श्रीवीरे मरुपेला तत्वोनो संस्कृत, प्राकृत, मागधी, गुजराती, हिंदुस्थानी वगेरे भनेक भाषामा हाल अवतार थएलो अनुभवाय छे. श्री वीरमभु मुक्तिमां गया तो पण गंगाना प्रवाहनी पेठे तेमनी पाछळ तेमनो उपदेशेलो तत्वमार्ग पुरुष परंपरा अखंड वहेवा लाग्यो. हाल पण ते प्रमाणे जोवामां आवे छे. संस्कृत भाषामां तथा मागधी भाषामा हाल ग्रंथो बनाववामां आवे तो प्रायः दश हजारमा पांच माणस पण भाग्येज समजी शके. संस्कृत तथा मागधीमा बनावेला ग्रंथोने पण गुर्जर भाषामां समनाववामां आवे त्यारेज लोकोना समजवामां आवे त्यारे गुर्जर भाषामां ग्रंथो बनाववामां आवे वो घणा लोको समजी के प्रम For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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