________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
maaaaaaaaaaaaaaaaa
t) केशी भने प्रदेशीनो संवाद. छे, ते तीर्थोनी यात्रा सेवा भक्ति करपाथी सम्यक्त्व निर्मल थाय छे. किंतु ते स्थावर तीर्थनी श्रद्धा ओळखाणकारक पृथ्वीतळ गमनकर्ता श्री सद्गुरु प्रत्यक्ष महाउपकारी छे. येनालंबनेनजीवो । भवांभोधितरतीति तीर्थः जेना आलंबने जीव संसार समुद्रने तरे छे ते तीर्थछे, श्री गुरु महाराजना आलंबने जीव संसार समुद्र तरे छे, माटे गुरु तेज तीर्थ छ, गुरुरूप तीर्थनी सेवाभक्ति झटिति प्रत्यक्ष फलदा छे. श्री गुरुनी वाणीरूप गंगामां जे स्नान करे छे ते पोते उपार्जनकृत कल्मषोने गमावे छे. चक्षुनी विद्यमानताए पण अन्य पदार्थोना निरीक्षणमा सूर्य चंद्र दीपकनी जरूर पडे छे. तेम भव्यात्माओने पोतानुं आत्मिक शुद्धस्वरुप अवलोकनार्थे गुरु सूर्य समान छे तेथी तेनी जरूर पडे छे, विशेष ए छे के, सूर्य अंतरनो प्रकाश करी शकतो नथी.अने गुरु महाराज अंतरना प्रकाशकारक छे.. माटे आ सूर्य करतां पण विलक्षण अलौकिक गुरुरूप सूर्य छे, पूर्वोक्त सद्गुरुनी त्रिकरणयोगे अत्यंत भावे सेवा करवी, सेवा कोजीर ए कहेवाथी एम सूचव्यु के जेने मुक्ति पदनी इच्छा होय तेने सद्गुरुनो बहुमानथी विनय करवो. कारण के धर्मनु मूळ विनय छे. अने विनय विना धर्मनी प्राप्ति थती नथी, अने धर्मनी माप्ति गुरु विना थाय नही माटे श्रद्धा भक्ति बहुमान पूर्वक गुरुराजनो विनय करवो.
मुरतरुनी उपमाथी समजवु के-गुरु अनंत आत्मधर्मना दानी छे.
आत्मधर्मनुं दान ते भाव अभयदान छे. पंचधादान छे. १ अभयदान, २ सुपात्रदान, ३ अनुकंपादान, ४ उचितदान, ५ कीचिदान, ए पांचमां महाउपकारक अभयदान मुख्य छ, द्विधा अभयदानं द्रव्यतो भावतच. अभयदान बे प्रकारे छे. १ द्रव्य अभयदान. २ भाव अभयदान. एकेंद्रियादियी ते पंचेन्द्रिय पर्यंत जी
For Private And Personal Use Only