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॥ अथ परमात्मदर्शन ॥
पंचशती प्रारभ्यते.
श्री संखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः
मंगलम् .
गुरु स्तुति, दुहा.
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सुरतरु जंगम तीर्थरूप, सद्गुरु साचा देव; त्रिकरण योगे तेहनी, जावे कीजे सेव. १
श्री सद्गुरुनी स्तुति कराय छे. अनादि काळथी जीव अज्ञान ( अविद्या ) थी बहिर वस्तुमां आत्मपणाथी बुद्धि धारण करी अनंतशः दुःखराशि भोक्ता थयो अने बहिरात्मभावे परवस्तुने पोतानी मानी स्वस्वरूप भूल्यो एवा मूढ आ जीवने शुद्ध स्वरूप ओळखावनार श्री गुरुमहाराज सत्य देवरूपे छे. मिथ्यात्व अने सम्यक्त्व स्वरूप समजावी शुद्ध मोक्षमार्ग योजक श्रीगुरुना समान बीजा देव नयी. मुक्ति रूप फळ देवामां श्रीगुरु कल्पवृक्ष छे. कल्पवृक्षो पौद्गलिक सुखदाता छे. अने गुरुरूप कल्पवृक्ष तो अनंत आत्मिक शाश्वत सुख समर्प छे. जो के उपादान कारणरूप गुरु महाराज नयी तो पण उपादान कारणनी शुद्धिकारक तथा सहायभूत निमित्त कारणरूप श्रीगुरुराज छे, ए कल्पवृक्षनी माति महा पुण्योदये थाय छे, गुरु जंगम तीर्थ छे, अन्यत्र के ज्यां श्री तीर्थंकरादिनां कल्याणक थयां छे, ते तीर्थ स्थावर तरीके कवाय
अन्य
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