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(७) धर्मनी महत्ता माटे क्षमा निष्कपटपणुं आदि सदगुणोनी जरुरीयात बतावीछे पश्चात् पत्र १३३ माथी आत्मानी शोध कोई विरला करेछे ने संबंधी एक बादशाह अने फकीरनी वार्ता आपी बागनुं दृष्टांत जणाव्युंछे. पश्चात् पत्र १४६ माथी मतिश्रुत आदि पंचज्ञाननुं स्वरूप दर्शाव्युंछे.
पश्चात् साधुनी आत्मध्यानादि क्रिया दर्शावीछे. पश्चात् आत्म स्वरूप दर्शाव्युछे. पश्चात् अनुक्रमे पत्र १९० माथी भव्यात्माए दश प्रश्न संबंधी विचार करवो जोइए. तेनां नाम जणावी अनुक्रमे वर्णन कयुछे. ते प्रश्नोना सातमा प्रश्नना विषयमांज पत्र १७५ माथी कर्मराजा अने धर्मराजानुं युद्ध वर्णन कर्युछे. ते स्थिर चित्तथी वांचवानी जरुरछे. पत्र ३०३ थी आठमा प्रश्ननो विषय शरु थाय छे तेनुं पूर्णप्रेमे मनन करवू जोइए. पत्र ३१५ माथी नवमा प्रश्ननो विषय शरु थायछे. पत्र ३३१ माथी आत्मा, कर्मनो तथा भोक्ता केवी रीतेछे तेनुं वर्णन कर्युछे. पश्चात् सिद्धस्वरूप दर्शाव्युछे. पश्चात् पत्रं ३५७ थी ईश्वर जगत् कर्ता नथी. तेम संबंधीनुं व्याख्यान कर्पुछे. पश्चात् षट्स्थानकनी सिद्धि करी बतावीछे. आत्मसिद्धि करवामां अनेक जिनागमोना अनुसारे युक्तियो दर्शावांछे. ते गु. क्तियोने जो मुखे करवामां आवे तो जैन धर्म तत्त्वोनी पूर्ण श्रद्धा याय. आत्मा कर्मनो नाश करी अनंत सुख प्राप्त करी अमर थाय छे तेज मुख्य मुद्दो ध्यानमा राखी तेना उपायो दर्शाव्याछे तेथी प्रत्येक मनुष्योनुं आं ग्रंथ वाचतां कल्याण थाय एमां कोई संदेह नथी. परमात्मदर्शन ग्रंथ वांचनार अवश्य ज्ञान दर्शन चारित्र पामी मुक्तिमार्ग पामेछे. जे भव्य जीवो होय त्हेने आ ग्रन्थमा लखेलां तत्त्वानी श्रद्धा थायछे. __• आ ग्रन्थना प्रत्येक पानाना मुखपर मुख्य हेडींग छे तेथी वांचनारने प्रत्येक विषयनी सरलता थशे. आ ग्रन्थमा छेल्ला दुहा तथा चोपाइयोनो अर्थ लख्यो नथी. पण कोइ भक्त पंडित पुरुष
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