Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (6) अवशेष दुहा तथा चोपाइयो उपर अर्थ पुरशे तो धर्मलाभ प्राप्त करशे. समयना अभावे अवशेष दुहा आदि उपर विवेचन थयुं नथी. ते दुहाओ वगेरे सद्गुरुना पासे जे वांचशे ते विशेषतः अर्थ प्राप्त करी शकशे. जडवादियोगी सामे रक्षण तरीके आ ग्रन्थ उपयोगी थशे. आ ग्रन्थने माध्यस्थ दृष्टिथी वांचशे ते सद्गुण रागधी तेनो यथार्थ तस्व रहस्य मेळवी शकशे. आ ग्रंथ मूळ तरीके - श्री लोदरा गाममां आरंभ्यो हतो त्यांची मेसाणे जई त्यां सं. १९६० नुं चोमासु कर्यु. त्यां अशाड खुदी ५ ना रोज आ ग्रंथ पूर्ण कर्यो. पश्चात् तेज चोमासामां विवेचन जेटलुं लखायुं छे तेटलं अत्र दाखल कर्यु छे: बाकीना दुहानुं विधेचन, कोई भक्त शिष्य पूर्ण करशे. आ ग्रन्थमां जे कंइ जिनाज्ञा विरुद्ध लखायुं होय ते संबंधी मिध्यादुष्कृत हो. सज्जन दृष्टिथी जे कोइ आ ग्रन्थ वांचशे रहेने अत्यंत लाभ प्राप्त थशे. ज्ञानिने आश्रवनां कारण ते संवररुपे परिमेछे. अने अज्ञानिने संवरनां कारण ते आश्रवरूपे परिणमेछे तेम योग्य जीवने आ ग्रन्थ सम्यग्पणे परिणमशे अने अयोग्य कुपात्र मत्सरी दुर्गुणग्राहीने आ ग्रन्थनुं वांचन, विपरीतपणे परिणमशे. मां तेनी दृष्टि तेज मुख्य कारणछे. प्रत्येक भव्यजीवो आ ग्रन्थ वांची अध्यात्मस्वरूपमां रमणता करी परमात्म स्वरूप प्राप्त करो. परमार्थ प्रति सर्वनी रुचि थाभो. परमानंद ने सर्व जीवो प्राप्त करो. सर्व जीवो मंगलमाला प्राप्त करते. एजशुभाशीः ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः मुकाम - अमदावाद - झवेरीवाडो. संवत १९६६ कार्तक वदी ८ लि. मुनि. बुद्धिसागर. आंबली पोळनो उपाश्रय. For Private And Personal Use Only

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