Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्भन. वोना प्राणोनुं रक्षण करवं तेमनो कोइ घात करतुं होय तो बचाववा तेने द्रव्य अभयदान कहे छे, दरेक जीवने जीव, मिय लागे छे. कोइने मरण शरण यq प्रिय लागतुं नथी. कधुंछे के. मरण समो नाध्य भयंः मरण समान कोइ भय नथी, माटे प्राणीओने कोई मारतुं होय तो अनेकरीत्या तेमनुं रक्षण करवू. जीवनी दयाथी जीव तीर्थकरनामकर्म उपार्जन करे छे, नरस्वर्गादि सुखसंपत्तिनो भोक्ता थाय छे. एक राजानी अणमानीती स्त्रीए चोरने फांसीनी शिक्षा थती अटकावी अने अन्य राणीओए लक्ष रुपैया खरची तेने मिष्टान्न जमाड्यां, किंतु चोरे अणमानीती स्त्रीनो अत्यंत उप. कार मान्यो. अने तेणीए छोडाव्यो त्यारे मुखी थयो, श्रीशान्तिनाथना जीवें पूर्व भवमा एक पारेवानो जीव बचाव्यो तेथी अत्यंत पुण्य उपार्जन कयु, तेम भव्यत्माओए प्रत्येक जीवोनी दया करवी, कोइ जीवनी हिंसा करवी नहीं, मिथ्यात्वे पाप बुद्धिरूप पिशाचिकाना प्रेर्या केटलाक जीवो मत्स्य अज पशुपंखीनां मांस भक्षण करे छे, मांस वेचे छे, मांस भक्षकनी अनुमोदना करे छे ते जीवो घोरकर्म ग्रही अति दारुण दुःखालय अधोगतिभाक् थाय छे अने आ भवमां पण कर्मोदये दुःखनी झाळमा फसाय छे, माटे मन वचन कायाए करी जीवनी हिंसा वर्जवी. २ भावअभयदान-भव्य जीवात्माओने तेना शुद्ध गुणोनुं दान आपq तेने भाव अभयदान कहे छे तद्विविधभाव अभयदान वे प्रकारे छे. १. स्वभाव अभयदान २. परजीवधर्म अभयदान. पोतानो आत्मा असंख्यातमदेशी छे अने ते प्रदशो अरूपी छे, कोइ काळे पण उत्पन थया नथी माटे अन छे, वर्तमान, भूत अने भविष्यत् कालमा प्रदशो जेरा छे तेवा ने तेवा रहे थे, माटे शायता छे, ए असंख्यात आत्माना प्रदेशो बाल्या पता For Private And Personal Use Only

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