Book Title: Parambika Stotravali
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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इतिश्रीपरदेवतालक्ष्यवह्मविद्याजगजालनाशनस्तोत्रं संपूर्णम्। __ श्रीमती संविद्रूपिणी विजयतेतराम् // सर्वावस्थास्वपि तथा सर्वदेशेषु वै पुनः॥ सर्वकालेषु सैवैका शरणं परमं मम // 1 // त्रिपुरा वृह्मसंविछीः परा सच्चि सनातनी // ईश्वरी परमेशानी शरणं परमं मम // 2 // सामरस्य स्वरूपा च चिद्धनानन्ददायिनी नित्या शुद्धा च बुद्धा च श० // 3 // पूर्णाहन्तात्मिका पूर्णा परमा परमोत्तमा परवात्मिका देवी श०॥४॥ चितिश्चिल्लक्षणाचारा चै तन्याचिन्त्यरूपिणी // चराचरस्वरूपाच श० // 5 // सकृद्धा ता भासमाना भास्वती वरदायिनी // विमाना विमला वि. श्वा श० // 6 // अनिर्देश्याद्वितीया च साक्षिणी चाक्षरा शिवा अनन्तानन्तरूपा च श० // 7 // ऊहापोहविनिर्मुक्ता हेयोपादेयवर्जिता // अस्टश्या स्वात्मरूपासा श० // 8 // यद्भासा भाषितं सर्वं जगदेतचराचरम् // परं ज्योतिःस्वरूपा सा श. // 9 // अलक्ष्या लक्षिता सर्वैः स्वात्मीकृत्य च सर्वदा // अनुभूतिस्वरूपा या श० // 10 // अन्तर्लक्ष्या योगिजनैर्ब हिर्लक्ष्याऽल्पबुद्धिभिः // अन्तर्बहिश्च सर्वज्ञैः श० // 11 // निजानन्दात्मिका नित्या नवीनानन्ददायिनी // निरंजना नित्यलाभा श० // 12 // निष्कलङ्का निराभासा नित्योत्कृष्टा निराकुला // निर्मानमोहा नित्यश्रीः श० // 13 // लोकोत्तरानुत्तरा च ह्यलौकिकगतिः सती // अनन्तरा सारतरा श० // 14 // शून्या शून्यालया शान्ता शन्त्यतीताखिलेश्वरी // ल.अतासर्वसिद्धान्ता श० // 15 // स्वतन्त्रा कालकलना For Private and Personal Use Only

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