Book Title: Parambika Stotravali
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसारजालपतितं जगदम्ब रक्ष // 3 // सर्वात्मिके सकललो कनिवासभूमे संध्यारुणाम्बरधरेऽरुणपुष्पपूज्ये / सन्मानशा लिपरिषेवितपादपने सं० // 7 // कल्याणवृष्टिकरुणाकटा क्षपाते कामप्रसादिनि कलंकहरे कुलेशि // मुक्तासुहारकुचभारनताङ्गयष्टे सं० // 8 // हर्षप्रदे हरिणशावकनेत्रयुग्मे हेलोड़तागणितपापजने गणेशि // गायत्रि गानरसिके गज. वक्रमातः सं० // 9 // लब्धस्वरूपपरमेखिलभावविज्ञे हेपु. पवाणपरिशोभितहस्तपझे // आदानदानरहिते हिमशैलकन्ये सं० // 10 ॥हींकारमन्त्रजपतत्परसंतुष्ट नहीश्रीगिरादिकसमस्तकलत्ररूपे // नासाग्रमौक्तिकलसदनारविन्दे सं० // 11 // सर्वोत्तमासनगते परमात्मरूपे बाहयादिका टकसमर्चनसुप्रसन्ने // श्रुत्यन्तर्गतचरणे करुणाकरे मांसं. // 12 // कल्पान्तशम्भुकृतताण्डवसाक्षिणि त्वं सत्यस्वरूपिणि सनातनि सर्वमन्त्रि / भक्तनिवेपरममङ्गलदिव्यमर्ने सं० // 13 // लक्ष्मीश्वरप्रभृतिदेववरप्रपूज्ये स्वाहास्वधास्तनयुगे प्रियकप्रियेशि // दुर्गे शिवे परमहंसपदप्रदे मां सं० // 14 // नहींकारनामजपभोगविमुक्तिदात्रि भण्डप्रचण्डदलिनि प्रकटप्रभावे // हेदण्डनाथनमिताधूियुगे शरण्ये सं० // 15 // श्रीमंत्रराजयुतमेतदलक्ष्यरूपं स्तोत्रंपठेद्भुविजनः परदेवतायाः मूर्तिनिधाय हृदये सहिविश्वजालंसछिद्ययातिसुखमातुलिकंप रंयः॥९॥ननोयंस्वर्णाख्यस्तव जननिपादेकारण पादृष्ट्य तस्य स्वरूतपरितापंपरिहर // मदर्थेमातति प्रकटय रूपान्ते स्तु नमनं कुरु त्वं विज्ञप्ति त्रिभुवनमहाराजमहिषीम् // 17 // For Private and Personal Use Only

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