Book Title: Parambika Stotravali
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कारकैः // मम तुसम्मतमेकमिदं सदा स्मर० // 17 // स्तु तिमिमामुपदेशवरां पठेत् चरणकंजपरायणमानसः॥ भव. ति वाञ्छितभाग्नरपूजितः सकलमातुरियात्पदमुत्तमम् // 1 // इति श्रीउपदेशषोड़शीसप्तदशीस्तोत्रं संपूर्णम् // ॐ अखिलसिद्धिकारिण्यैनमः॥ ॐ यामाश्रिताभुविजना भवसिन्धुनौकामुल्लंघ्य विश्वजल धि पदमक्षयंतत् // गच्छन्त्यगाधमवबाधमखण्डरूपं तामीश्व रीमखिलसिद्विकरी नमामि॥ 1 // यन्नामकल्पतरुतोप्यधिक प्रभावमप्रार्थितं त्रिदिवमोक्षफलं ददाति // जिहानगं भवतु सन्ततमेतदर्थं तामी० // 2 // यत्पादपङ्कजमनोहरभक्तियो गो योगेषु संशयहरेष्वखिलेषु मुख्यः॥ यंप्राप्यकेवलपदंमनुजः प्रयाति तामी० // 3 // यत्पादसंश्रितजनः खलुदीनहीनो लोकत्रितापरहितो भूवि चक्रवर्ती // स्यादन्जसाखिलगुणाकर शुद्धभावस्तामी० // 4 // जानन्ति यां पशुजनाजगदेकरूपां सच्चितस्वरूपपरमां जगदादिभूताम्॥येज्ञानवन्तइहते सकले ष्ठदांबां तामी० // 5 // यत्पादपङ्कजमरन्दरसानुभावि सन्मानसभ्रमरमत्तसमीहितं नः स्यादन्यदत्रपरितिष्टतिनिष्क्रियस्सं स्तामी० // 6 // यत्पादपद्मरजसां कणमुत्तमाङ्गे येधारयन्ति खलुतेचधृतातपत्राः // अन्तेस्मृतिं परिलभन्त इहैवधन्या स्तामी० // ७॥दासोऽस्मिते जननिजातभयंब्रुवन्तमेवं हि सा भगवती करुणासमुद्रासद्योभयंदिशतिविनमपास्यदूरं तामी० // 8 // नीराजयन्ति चरणौ मुकुटप्रभौधैर्यस्यास्त्रितापहरणो द्रुहिणादिदेवाः // श्रीशम्भुमानससरोवरराजहंसौ तामी० For Private and Personal Use Only

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