Book Title: Parambika Stotravali
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Page 122
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 118 ) का ये सिद्धांत है / शक्ति शक्तिमतोरभेदः शक्ति के अरुश क्तिमान के अभेद है अर्थात् एक ही है ईहां बोत श्रुती और पुराण के वचन उपलभ्य है महात्मालोक श्रीमदुर्गोपनिषदादि उपनिषदनते और ऋगादिवेद / और श्रीमद्भगवती भागवत मार्कंडेयपुराण नारदपुराण देवीपुराण महाभारथ सनत्कुमार संहितादिकनते और रुद्रयामल महाकाल संहिता सूतसंहितादि आगमन और श्रीपूज्यपाद भगवच्छंकराचार्य के वचन सौंदर्य लहर्यादिकनते जानऊगे और जो प्रथक मानोंगे तो और सिवाय क्या है परंतु वो जो परमात्मा सच्चिदानंद है सो जगदीश्वर तो उसी करके कहा जायगा और उससहित सदा रहता है कभी वियुक्त नहीं होता जो कभी वियुक्त होजावे तो कुछ कार्य करण माफिक वो नही रहता है ओष्टफुरकाणे तक भी सामर्थ्य उसकी नहीं होती हो सृष्टिस्थिति संहार करणाऔर भक्त का उद्धार करणा ये तो बोहत दूर रहा उस विगर शिवशववत है। उस सहित हि परम मंगल रूप और परम ऐश्वर्यवान् कर्ता पालयिता हर्ता भक्तांका उद्धर्ता भगवान् तो जबही कहा वेगा के शक्ति सहित होगा शक्ति परमेश्वर तें अभिन्न अ. जब सामर्थ्य है करै और नहीं भी करे और विलक्षण कर देवे अघटन घटना में बड़ी प्रवीणहै तिनहीते ईश्वरसर्व समर्थ है और नित्य श्रीमंगलरूपइसीकरके होताहै,जोचाहै सो करता है, परमेश्वरके सर्वकार्य करणेकी सिद्धि रूपिणीयहीहै, इस वास्ते शक्ति का नाम हर सिद्धि है।हरनाम यहां परमेश्वर का दुःख हरण से है जहांतहां लोकिक में और परमार्थह में For Private and Personal Use Only

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