Book Title: Panchsangraha Part 10 Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur View full book textPage 5
________________ गया। गुरुदेवश्री ने श्री सुराना जी को दायित्व सौंपते हुए फरमाया -'मेरे शरीर का कोई भी भरोसा नहीं है, इस कार्य को शीघ्र सम्पन्न कर लो।' उस समय यह बात सामान्य लग रही थी। किसे ज्ञात था कि गुरुदेवश्री हमें इतनी जल्दी छोड़कर चले जायेंगे। किंतु क र काल की विडम्बना देखिये कि ग्रन्थ का प्रकाशन चालू ही हुआ था कि १७ जनवरी १९८४ को पूज्य गुरुदेव के आकस्मिक स्वर्गवास से सर्वत्र एक स्तब्धता व रिक्तता-सी छा गई। गुरुदेव का व्यापक प्रभाव समूचे संघ पर था और उनकी दिवंगति से समूचा श्रमणसंघ ही अपूरणीय क्षति अनुभव करने लगा। पूज्य गुरुदेवश्री ने जिस महाकाय ग्रन्थ पर इतना श्रम किया और जिसके प्रकाशन की भावना लिये ही चले गये, वह ग्रन्थ अब दस भागों में पूज्य गुरुदेवश्री के प्रधान शिष्य मरुधराभूषण श्री सुकनमुनि जी महाराज के मार्गदर्शन में सम्पन्न हो गया है, यह प्रसन्नता का विषय है। श्रीयुत सुराना जी एवं श्री देवकुमार जी जैन ने इस ग्रन्थ के प्रकाशनमुद्रण सम्बन्धी सभी दायित्व निभाया है और इसे शीघ्र ही पूर्ण कर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया, यह अतीव आनन्द का विषय है । आचार्य श्री रघुनाथ जैन शोध संस्थान अपने कार्यक्रम में इस ग्रन्थ को प्राथमिकता देकर सम्पन्न करवाने में प्रयत्नशील रहा है। आशा है, जिज्ञासु पाठक लाभान्वित होंगे। ___ मन्त्री आचार्य श्री रघुनाथ जैन शोध संस्थान जोधपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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