Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir C प्रथमपद्या शकम् । वजह इह आणयणप्पओग पेसप्पओगयं चेव । सद्दाणुरूववायं तह बहिया पोग्गलक्खेवं ॥२८॥ आहारदेहसकारखंभवावारपोसहो श्रीदशशास्त्रीय मूल | यऽन्नं । देसे सव्वे य इमं चरमे सामाइयं णियमा ।। २९ ।। अप्पडिदुप्पडिलहियपमञ्जसेजाइ वञ्जई एत्थ । सम्मं च अणणुपालणमासूत्रम्। हाराईसु सव्वेसु । ३० ।। अण्णाईणं सुद्धाण कप्पणिजाण देसकालजुतं । दाणं जईणमुचियं निहीण सिक्खावयं भणियं ॥ ३१ ॥ सञ्चित्तणिक्खिवणयं वजइ सञ्चित्तपिहणयं चेव । कालाइक्कमपरववएसं मच्छरिययं चेव ।। ३२ ॥ एत्थं पुग अइयारा णो परिसुद्धेसु ॥ ३॥ होति सव्येसु । अकखंडविरइभावा बजइ सबत्थ तो भणियं ॥३३।। सुचादुपायरक्खणगहणपयचविसया मुणेयव्वा । कुंभारचकभाम| गर्दडाहरणेण धीरेहिं ।। ३४ । गहणादुवरि पयत्ता होइ असन्तोऽवि विरइपरिणामो । अकुसलकम्मोदयओ पडइ अवष्णाइ लिंगमिह | ।। ३५ ।। तम्हा णिचसतीए बहुमाणेणं च अहिगयगुणम्मि । पडिवक्खदुगुंछाए परिणइआलोयणेणं च ।। ३६ ।। तित्थंकरभनीए सुसाहुजगपज्जुवासणाए य। उत्तरगुणसद्धाए य एत्थ सया होइ जइयव्वं ॥३७॥ एवमसंतोऽवि इमो जायइ जाओऽवि ण पडइ कयाई। ता एत्थं बुद्धिमया अपमाओ होइ कायव्यो ॥३८॥ एत्थ उ सावयधम्मे पायमणुव्वयगुणव्वयाई च । आवकहियाई सिकवावयाई पुण इत्तराईति ।। ३९ ।। संलहणा य अंते ण णिओगा जेण पव्वयइ कोई । तम्हा णो इह भणिया विहिसेसमिमस्स वोच्छामि ॥ ४० ।। निवसेज्ज तत्थ सद्धो ( सड्ढो ) साहूणं जत्थ होइ संपाओ । चेइयहराई जम्मी तयण्णसाहम्मिया चेव ।। ४१ ॥ णवकारेण विबोहो अणुसरणं सावओ वयाई मे । जोगो चिइवंदणमो पञ्चक्खाणं च विहिपुब्वं ॥ ४२ ॥ तह चेईहरगमणं सकारो वंदणं गुरुसगासे । पच्चक्खाणं सवर्ण जइपुच्छा उचियकरणज्ज । ४३।। अविरुद्धो ववहारो काले तह भोयणं च संवरणं । चेइहरागमसवणं सकारो बंदणाई &ाय ॥ ४४ ॥ जइविस्सामणमुचिओ जोगो नवकारचिंतणाईओ । गिहिगमणं विहिसुवर्ण सरणं गुरुदेवयाईणं ॥ ४५ ।। अब्बंभे पुण* R For Private and Personal Use Only

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