Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यं च एत्य यं इय सुद्धं नतजुत्तीए ।। २७२ ।। ततम्मि वंदणाए पूयणसकारहेउ उम्सग्गी । जतिणावि हु णिद्दिष्ट्ठी ते पुण दव्य जिन पञ्चाशक इह दहावि दबन्थओ पत्थ ।।२७४: ओसरणे बलि भवन त्थयसरुवे।।२७३।। मल्लाइएहिं पूआ सकारो पवरवत्थमादीहिं । अण्णे विवज्जा मूलम्. पश्चाशकम मादी ण चेह जं भगवयावि पडिसिद्धं । ता एसमणुण्णाओ उचियागं गम्मती तेण ॥२७॥ण य भगवं अणुजाणति जोग मुक्खविगुणं कदाचिदपि । ण य तयणुगुणोऽवि तओ ण बहुमतो हाति अण्णसि।।२७६॥ जो चेत्र भावलेसो सा चव य भगवतो वहुमतो उ । ण तओऽवि णयरेणंति अत्थओ मोवि एमेव ।।२७७|| कज्ज इच्छंतणं अणंतर कारणंपि इटुंतु। जह आहारजातिनि इच्छंतणह थाहारा VI| २७८ ।। जिणभवणकारणाइवि भरहादणि ण चारितं तेण | जह तेसि चिय कामा सल्लविसादीहिं णाहिं ।। २७९ ॥ ता तंपि। अणमयं चिय अप्पडिसेहाओ तंत जुनीए । इय सेसाणवि एत्थं अणु मोयणमादि अविरुद्धं ।। २८ ।। जं च च उद्धा भणिओ विणओ3 उवयारिओ उ जो तत्थ । सो तित्थगरे णियमा ण होइ दबत्थयादण्णा ।। ८१ ।। एयस्स उ संपाडणहे उं तह चेव बंदणाए उ । पूजणमादुचारणमुववणं होइ जइणोऽवि ॥ २८२ ।। इहरा अणत्थगं तं ण य तयणु चारणेण मा भणिता । ता अहिसंधारणमो संपा | डणमिट्टमेयस्य ।। २८३ ।। सक्खा उ कसिणसयमदब्बाभावेहि (वो य) णो अयं इट्टो । गम्मइ तंतठितीए भावपहाणा हि मुणउत्ति ॥ २८४ ॥ एपहितो अण्णे जे धम्माहगारिणो हु तेसि तु । सक्खं चिय विष्णेओ भावंगतया जतो भाणतं ॥ २८५ ।। अकसिणपवनयाणं विरयाविरयाण एस खलु जुत्तो । संसारपयणुकरणे दव्यथए कूवदिलुतो ।। २८६ ॥ सो खलु पुप्फाईओ तत्थुत्तो न जिणभवणमाईवि | आइसहा वुत्तो तयभावे कस्स पुप्फाई? ।। २८७ ।। णणु तत्थेव य मुणिणो पुप्फाइनिवारणं फुडं अस्थि । अस्थि नयं सयकरण पड़च्च नऽणुमायणाइवि ।। ८८।। सुबह य वहरिसिणा कारवणंपि हु अणुट्टियमिमम्स । वायगगंथेसु तहा ॥१७॥ For Private and Personal Use Only

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