Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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पश्चाशकमुलम्
४६ स्तव&॥२५४|| मिउपिंडो दवघडो सुसावगो तह य दव्वसाहुत्ति । साहू य दव्वदेवो एमाइ सुए जओ भणित।।२५५।। ता भावत्थयहेऊ जो
पश्चाशकम्. सो दव्वत्थओ इहं इहो । जो उ व णेवंभूओ स अप्पहाणो परं होति।।२५६।। अप्पाहण्णेऽवि इहं कत्थइ दिहोउ दव्वसद्दोत्ति । अंगारमदगो जह दवायरिओ सयाऽभब्यो । २५७ ॥ अप्पाहण्णा एवं इमस्स दव्वत्थवत्तमविरुद्धं । आणाबज्झत्तणओ न होइ मोक्खंगया णवरं ॥२५८॥ भोगादिफलविसेसो उ अस्थि एत्तोऽवि विसयभेदेण । तुच्छो उ तगो जम्हा हवति पगारंतरेणावि ॥२५९|| उचियाणुहाणाओ विचित्तजइजोगतुल्लमो एस । जंता कह दब्बत्थओ तद्दारेणप्पभावाओ ॥२६० ।। जिणभवणादिविहाणहारेणं एस होति सुहजोगो । उचियाणुट्ठाणंपि य तुच्छो जइजोगतो णवरं ।। २६१ ॥ सब्वत्थ निरभिसंगत्तणण जइजोगमो महं होइ । एसो उ अभिरसंगा कत्थइ तुच्छेवि तुच्छे उ ॥२६२॥ जम्हा उ अभिस्संगो जीवं दूसेइ णियमतो चेव । तसियस्स जोगो विसघारियजोगतुल्लोत्ति ।। २६३ ॥ जइणो असियस्सा हेयाओ सब्बहा णियत्तस्स । सुद्धो उ उवादेए अकलंको सव्वहा सो उ ॥ २६४ ॥ असुहतरंडुत्तरणप्पाओ दव्वत्थओऽसमत्तो य । णदिमादिसु इयरो पुण समत्तबाहुत्तरणकप्पो ॥२६५।। कडुगोसहादिजोगा मंथररोगसमसण्णिहो वावि । पढमो विणोसहेणं तक्खयतुल्लो व वितिओ उ ।। २६६ ॥ पढमाओं कुसलबंधो तस्स विवागेण सुगइमादीया । तत्तो परंपराए बितिओऽविहु होइ कालेणं ॥२६७।। चरणपडिवत्तिरूवो थोयव्वोचियपवित्तिओ गुरुओ । संपुष्णाणाकरणं कयकिच्चे | हंदि उचियं तु ॥२६८।। णेयं च भावसाहुं विहाय अण्णो चएति काउंजे । सम्मं तग्गुणणाणाभावा तह कम्मदोसा य ॥२६९।। इत्तो |च्चिय फुल्लामिसथुइपडिवत्तिपूयमझमि । चरिमा गरुई इट्टा अण्णेहिवि णिचभावाओ ।।२७०॥ दव्वत्थयभावत्थयरूवं एयमिय होतिर ४ दट्ठव्वं । अण्णोण्णसमणुबद्धं (विद्वं) णिच्छयतो भणियविसय तु ॥ २७१ ।। जइणोऽवि हु दव्वत्थयभेदो अणुमोयणेण अथिति ।
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