Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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मुलम्
पश्चाशक-18 गहण पालणा विरतिवुड्डि चवत्ति । होइ इहरा उ मोहा विवजओ भणियभावाणं ।। २२० ।। असणं ओयणसत्तुगमुग्गजगाराइ खज-18 ५ प्रत्यागविही य । खीराई सूरणाई मंडगपभिई य विष्णेयं ॥२२१।पाणं सोवीरजवोदगाइ चित्तं सुराइगं चव । आउक्काओ सब्बो ककड-10
ख्यान गजलाइयं च तहा ॥ २२२ ॥ भत्तोसं दन्ताई खज्जूरं नालकेरदक्खादी । ककडिगंचगफणसाइ बहुविहं खाइमं णेयं ॥२२३॥ दंतवणं
पश्चाशकम्. तंबोलं चितं तुलसीकुहेडगाई य । महुपिप्पलिमुंठाई अणे गहा साइमं होइ ।। २२४ ॥ लेसुद्देसेणेए भेया एएसि दंसिया एवं । एयाणुसारओ च्चिय सेसा सयमेव विष्णेया ॥२२५।। तिविहाइभेयओ खलु एत्थ इमं वणियं जिणिदेहिं । एत्तो चिय भेएसुवि सुहुमंति बुहाणमविरुद्धं ॥२२६।। अण्णे भणति जतिणो तिविहाहारस्स ण खलु जुत्तमिणं । सधविरइउ एवं भेयग्गहणे कहं सा उ॥२२७||
अपमायवुड्डिजणगं एयं एत्थंपि दंसियं पुव्वं । तब्भोगमित्तकरणे सेसच्चागा तओ अहिगो ।। २२८ ।। एवं ( कहिंचि) कहंचि कज्जे भादविहस्सवि तण्ण होति चिंतमिगं । सच्चं जइणो णवरं पाएगण अण्णपरिभोगो ॥ २२९ ॥ विहिणा पडिपुण्णम्मि भोगो विगए य
थेवकाले उ । सुहधाउजोगभावे चित्तेणमणाकुलेण तहा ।। २३० ॥ काऊण कुसलजोगं उचियं तकालगोयरं णियमा । गुरुपडिवत्तिप्पमुहं मंगलपाठाइयं चेत्र ।। २३१ ॥ सरिऊण विसेसेगं पच्चक्खायं इमं मए पच्छा । तह संदिसाविऊणं विहिणा मुंजंति धम्मरया | ॥२३२।। सयपालणा य एत्थं गहियम्मिवि ता इमम्मि अन्नेमा दाणे उत्रएसम्मि य ण होति दोसा जहऽण्णत्थ ॥२३३।। कयपच्चक्खाणोवि य आयरियगिलाणबालवुड्डाणं । देज्जासणाइ संते लाभे कयबीरियायारो ॥२३४॥ संविग्गअन्नसंभोइयाण दंसेज्ज सङ्कग
कुलाणि । अतरंतो वा संभोइयाण जह वा समाहीए ।। २३५ ।। एवमिह सावगाणवि दाणुवएसाइ उचियमो णेयं । सेसम्मि वि एस 18 विही तुच्छस्स दिसादवेक्खाए ॥२३६।। संतेअरलद्विजुएअराइभावेसु होइ तुल्लेसु । दाणं दिसाइभेए तीए दितस्स आणादी ॥२३७॥ ॥ १४ ॥
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