Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुलम् ॥१३॥ आगारा । पंच अभत्तट्ठस्स उ छप्पाणे चरिम चत्तारि ।। २०३ ।। पंच चउरो अभिग्गहि णिब्विइए अढ णव य आगारा। अप्पाउ II५प्रत्याप्रारणे पंच उ हवंति सेसेसु चत्तारि ॥ २०४ ॥ णवणीओगाहिमए अद्दवदहिपिसियघयगुले चेव । णव आगारा तेसि सेसदवा-15 ख्यान णं च अडेव ।। २०५॥ वयभंगो गुरुदोसो थेवस्सवि पालणा गुणकरी उ। गुरुलाघवं च णेयं धम्मम्मि अओ उ आगारा सपश्चाशकम्. | ॥ २०६ ।। सामइएवि हु सावञ्जचागरूवे उ गुणकरं एयं । अपमायबुड्डिजणगत्तणेण आणाउ विष्णेयं ।। २०७॥ एत्तो य अप्पमाओ जायइ एत्थमिह अणुहवो पायं । विरतीसरणपहाणे सुद्धपवित्तीसमिद्धफलो ।। २०८ ॥ ण य सामाइयमेयं बाहइ भेयगहणे (ग्गहे) वि सम्वत्थ । समभावपवित्तिणिवित्तिभावओ ठाणगमणं व ॥२०९।। सामइए आगारा महल्लतरगेवि णेह पण्णत्ता । भणिया अप्पतरेऽवि हु णवकाराइम्मि तुच्छमिणं ॥२१०।। समभावे च्चिय तं जं जायइ सब्बत्थ आवकहियं च । ता तत्थ ण आगारा पण्णता |किमिह तुच्छति । २११।। तं खलु णिरभिस्संग समयाए सव्वभावविसयं तु । कालावहिम्मिवि परं भंगभया णावाहितेण ॥ २१२॥ मरणजयज्झवसियसुहडभावतुल्लमिह हीणणाएण । अववायाण ण विसओ भावयचं पयत्तेणं ।। २१३ ॥ एत्तो च्चिय पडिसेहो दर्द अजोग्गाण वण्णिओ समए । एयस्स पाइणोऽवि हु बीयंति विही य अइसइणा ॥ २१४ ।। तस्स उ पवेसणिग्गमवारणजोगेसु जह उ अबवाया । मूलाचाहाएँ तहा णवकाराइम्मि आगारा ।। २१५ ।। ण य तस्स तेसुऽवि तहा णिरभिस्संगो उ होइ परिणामो । पडियारलिंगासिद्धो उणियमओ अण्णहारूवो ।। २१६ ॥ण य पढमभाववाघायमो उ एवंपि अवि य तस्सिद्धी। एवं चिय होड दर्द इहरा वामोहपायं तु ॥ २१७ ॥ उभयाभावेऽवि कुतोऽवि अग्गओ हंदि एरिसो चेव । तकाले तब्भावो चित्तखओवसमओ ओ *॥ २१८ ।। आहारजाइओ एस एत्थ एकोवि होति चउभेओ । असणाइजाइभेया णाणाइपसिद्धिओ ओ ॥ २१९ ॥ णाणं सहहणं | सा॥ For Private and Personal Use Only

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