Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीदशशास्त्रीय मूल सूत्रम् । ॥ १२॥ सरस | तहवि तई परिसुद्धा गिहीण कूवाहरणजोगा ॥ १८६ ।। असदारंभपवत्ता जं च गिही तेण तेसि विनेया। तन्निवित्तिफल च्चिय | ५प्रत्या एसा परिभावणीयमिणं ।।१८७।। उवगाराभावम्मिवि पूज्जाणं पूजगस्स उवगारो। मंतादिसरणजलणाइसेवणे जह तहेहंपि ॥१८८।। ख्यान| देहादिणिमित्तंपि हु जे कायवहम्मि तह पयट्टति । जिणपूयाकायवहम्मि तेसिमपवत्तणं मोहो । १८९ ॥ सुत्तभणिएण विहिणा दिपञ्चाशकम् गिहिणा णिव्याणमिच्छमाणेण । तम्हा जिणाण पूजा कायव्वा अप्पमत्तेणं ॥१९०।। एकंपि उदगबिंदुं जह पकिखत्तं महासमुद्दम्मि । जायइ अक्खयमेवं पूया जिणगुणसमुद्देसु ॥ १९१ ॥ उत्तमगुणबहुमाणो पयमुत्तमसत्तमज्झयारम्मि । उत्तमधम्मपसिद्धी पूयाए जिणव रिंदाणं ॥ १९२ ।। सुबइ दुग्गइणारी जगगुरुगो सिंदुवारकुसुमेहिं । पूजापणिहाणणं उबवण्णा तियसलोगम्मि ॥१९३॥ सम्म णाऊPाण इमं सुयाणुसारेण धीरपुरिसेहिं । एवं चिय कायव्वं अविरहियं सिद्धिकामेहिं ।। १९४ ।। इति पूयापगरणं चउत्थं ॥ | नमिऊण बदमाण समासओ सुत्तजुत्तिओ वोच्छ । पञ्चक्खाणस्स विहिं मंदमइविवोहणहाए ॥ १९५॥ पच्चक्खाणं नियमो चरित्तधम्मो य होति एगट्ठा । मूलुत्तरगुणविसयं चित्तमिण वणियं समए ॥ १९६ ॥ इह पुण अद्धारूवं णवकारादि पतिदि| गोवओगित्ति । आहारगोयरं जगिहीण भणिमो इमं चेव ॥ १९७ ।। गहणे आगारेसुं सामइए चेत्र विहिसमाउत्तं । भेए भोगे सय पालणाएँ अणुवंधभावे य ।। १९८ ॥ दारगाहा ।। गिम्हति सयंगहीय काले विणएण सम्ममुवउत्तो। अणुभासंतो पइवत्थु जाण. | गो जाणगसगासे ॥१९९ ॥ एत्थं पुण चउभंगो विष्णेओ जाणगेयरगओ उ। सुद्धासुद्धा पढमंतिमाउ सेसेसु उ विभासा | Bा॥ २०० । बिइए जाणावेउं ओहेणं तइए जेडगाइमि । कारणओ उ न दोसो इहरा हाइत्ति गहणविही ॥ २०१॥ दो चेव | णमोकारे आगारा छच्च पोरिसीए उ । सत्तेव य पुरिमड्ढे एक्कासणगम्मि अहेव ॥ २०२ ॥ सत्तेगट्ठाणस्स उ अडेवायंबिलस्स आ For Private and Personal Use Only

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