Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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४ पूजा
श्रीदशशा- सुंदरभावा तेसि इयरम्मवि रयणणाएण ॥ १६९ ।। जरसमणाई रयणा अण्णायगुणावि ते समिति जहा। कम्मज्जराइ थुइमाइयावि तह स्त्रीय मूल
| भावरयणाउ ।। १७० ॥ ता एयपुव्वगं चिय पूजाए उवरि वंदणं नेयं । अक्खलियाइगुणजुयं जहागमं भावसारं तु ॥ १७१ ।।। सूत्रम्।
कम्मविसपरममंतो एवं एयंति बेंति सव्वण्णू ( समयण्णू)। मुद्दा एत्थुस्सग्गो अक्खोभो होइ जिणचिण्णो ।। १७२।। एयस्स समत्तीए कुसलं पणिहाणमो उ कायव्वं । तत्तो पवित्तिविग्घजयसिद्धी तह य थिरीकरणं ।। १७३ ।। एत्तो चिय ण णियाणं पणिहाण बोहिपत्थणासरिसं । सुहभावहेउभावा णेयं इहरापवित्ती उ ॥ १७४ ॥ एवं तु इहृसिद्धी दब्बपवित्तीउ अण्णहा णियमा । तम्हा अविरुद्धमिणं णेयमवत्थंतरे उचिए । १७५ ॥ तं पुण संविग्गणं उवओगजुएण तिब्बसद्धाए । सिरणमियकरयलंजलि इय कायव्वं पय|त्तेणं ॥ १७६ ॥ जय वीयराय ! जयगुरू होउ ममं तुह पभावओ भयवं । भवणिब्बेओ मग्गाणुसारिया इडफलसिद्धी ॥१७७॥ लोय|विरुद्धच्चाओ गुरुजणपूआ परत्थकरणं च । सुहगुरुजागो तव्वयणसेवणा आभवमखंडा ॥ १७८ ॥ युग्मम् ।। उचियं च इमं णयंत तस्साभावाम्म तप्फलस्सण्णे । अपमत्तसंजयाणं आराऽणभिसंगओ ण परे ॥ १७९ ।। मोकखंगपत्थणा इय ण णियाणं तदुचियस्स विण्णेयं । सुत्ताणुमइत्तो जत्थ बोहीए पत्थणा माणं ॥ १८० ॥ एवं च दसाईसुं तित्थयरंमिवि णियाणपडिसेहो । जुत्तो भवपडिबद्धं साभिस्संगं तयं जेण ।। १८१ ।। जं पुण णिरभिस्संगं धम्मा एसो अणेगसत्तहिओ। णिरुवमसुहसंजणओ अपुव्वचिंतामणीकप्पो ॥ १८२ ॥ ता एयाणुहाणं हियमणुवहयं पहाणभावस्स । तम्मि पवित्तिसरूवं अत्थापत्तीएँ तमदुई ।। १८३ ।। युग्मम् ।। कय|मित्थ पसंगेण पूजा एवं जिणाण कायव्वा । लघृण माणुसत्तं परिसुद्धा सुत्तनातीए ॥ १८४ ।। पूजाए कायवहो पडिकुट्ठो सो य जाणेव पुज्जाणं । उवगारिणित्ति तो सा परिसुद्धा कह णु होइत्ति ॥१८५ ।। भण्णइ जिणपूयाए कायवहो जतिवि होइ उ कहिचि ।।
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॥ ११ ॥
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