Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रादशशा- लिंगाई ।। ९९ ।। मग्गणुसारि सड्डो पष्णवणि जो कियापरो चेव । गुणरागी सकारंभसंगओ तह य चारित्ती ।। १०० ॥ एते अहि- तीयपक्षा स्त्रीय मूल गारिणो इह ण उ सेसा दबओऽवि जं एसा । इयरीऍ जोग्गयाए सेसाण उ अप्पहाणत्ति ।। १०१॥ण य अपुणबंधगाओ परेण इहर शकम् । सूत्रम् । * जोग्गयावि जुत्तत्ति । ण य ण परेणवि एसा जमभब्वाणपि णिहिट्टा ॥१०२॥ लिंगा ण तिए भावो ण तयत्थालोयण णा ॥ ७॥ गुणरागो । णो विम्हओ ण भवभयमियवच्चासो य दोहपि ॥१०३॥ वेलाइ विहाणमि य तग्गयचित्ताइणा य विष्णेओ। तबुड्डि- भावभावहिं तह य दब्वेयरविसेसो ॥१०४॥ सइ संजाओ भावो पायं भावंतरं जओ कुणइ । ता एयमेत्थ पवरं लिंगं सदभाववुड्डी तु ॥ १०५ ॥ अमए देहगए जह अपरिणयम्मिवि सुभा उ भावत्ति। तह मोक्खहे उअमए अष्णहिवि हंदि णिदिवा ॥ १०६ ।। मंताइविहाणम्मिवि जायइ कल्लाणिणो तहिं जत्तो। एनोऽधिगभावाओ भव्वस्स इमीए अहिगोति ।। १०७॥ एइऍ परमसिद्धी जायइ जत्तो दढं तओ अहिगा। जनैम्मिवि अहिगतं भव्बस्सेयाणुसारेण ।। १०८ ।। पायं इमीए जत्ते ण होइ इहलोगियावि हाणित्ति । णिरुषकमभावाओ भावोऽवि हु तीर छेयकरो ॥ १०९ ।। मोक्षद्धदुग्गगहणं एवं तं सेसगाणवि पसिद्धं । भावेयब्वमिणं खलु सम्मति कयं पसंगणं ॥ ११ ॥ पंचंगो पणिवाओ थयपाढो होइ जोगमुद्दाए। बंदण जिणमुद्दाए पणिहाणं मुत्तमुत्तीए ॥ १११ ॥ दो जाणू दोण्णि करा पंचमगं होइ उत्तमंगं तु। सम्मं संपणिवाओणेओ पंचंगपणिवाओ ।।११२।। अण्णोष्णन्तरिअंगुलिकोसाकारहिं दोहि हत्थेहिं । पिट्टोवरिकोप्परसंठिएहि तह जोगमुद्दत्ति ॥ ११३ ॥ चत्तारि अंगुलाई पुरओ ऊणाई जत्थ पच्छिमओ। पायाणं उस्सग्गो एसा पुण होइ जिणमुद्दा ।। ११४ ।। मुत्तासुत्ती मुद्दा समा जहिं दोऽवि गम्भिया हत्था। ते पुण ललाडदेसे लग्गा अणे अलग्गत्ति ॥११५ ।। सव्वत्थवि पणिहाणं तग्गयकिरियाभिहाणवन्ना(ने)सु । अत्थे विसए य तहा दिहतो छिन्नजालाए ॥११६ ॥ ण य For Private and Personal Use Only

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