Book Title: Padma Vardhaman Sanskrit Dhatu Shabda Rupavali Part 02
Author(s): Rajpadmasagar, Kalyanpadmasagar
Publisher: Padmasagarsuri Charitable Trust

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Page 221
________________ 2161 धातु सन्नन्त तृ, पु. एव स्वाद् | सिस्वादिषते चाखवा इच्छे छे निनीषति लइ जवा इच्छे छे यिचाचिषति मांगवा इच्छे छे राज | रिराजिषति दीपवा इच्छे छे वह विवक्षति वहन करवा इच्छे छे ईचिक्षिषते जोवा माटे इच्छे छे रूह् / रूरूक्षति -: साधित धातु :| प्रेरक प्रेरक अद्यतनी या यगलुबन्त / तृ, पु. एव / तृ, पु. एव / तृ, पु. एव - तृ, पु. एव स्वादयति असीस्वदत् सास्वाद्यते सास्वादीति चखाडे छे चाखवा माटे प्रेरणा करी | वारंवार चाखे छे वारंवार चाखे छे नाययति अनीनयत् नेनीयते नेनयीति लई जवरावे छे लइ जवा प्रेरणा करी | वारंवार लइ जाय छे | वारंवार लइ जाय छे याचयति अयाचायत् यायाच्यते यायाचीति मंगावे छे मांगवा माटे प्रेरणा करी | वारंवार मांगे छे वारंवार मांगे छे राजयति अरीरजत् राराज्यते राराजीति दीपावे छे दापावा प्रेरणा करी | वारंवार दीपे छे वारंवार दीपे छे वाहयति अवीवहत् वावह्यते वावहीति | वहन करावे छे | वहन करवा प्रेरणा करी | वारंवार वहन करे छे / वारंवार वहन करे छे ईक्षयति ऐक्षिक्षत् | जोवरावे छे जोवा माटे प्रेरणा करी रोहयति अरूरूहत् रोरूह्यते रोरोहीति ईन इक्ष

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