Book Title: Padma Vardhaman Sanskrit Dhatu Shabda Rupavali Part 02
Author(s): Rajpadmasagar, Kalyanpadmasagar
Publisher: Padmasagarsuri Charitable Trust
View full book text ________________ 2141 -: साधित धातु :धातु सन्नन्त प्रेरक प्रेरक अद्यतनी यन्त यङ्गलुबन्त तृ, पु. एव / तृ, पु. एव / तृ, पु. एव / तृ, पु. एव / तृ, पु. एव दृश् / दिदृक्षति दर्शयति अदीदृशत्/अददर्शत् / दरीदृश्यते दरीदृशीति जोवा माटे इच्छे छे / जोवा माटे प्रेरणा करे छ जोवा माटे प्रेरणा करी | वारंवार जूवे छे वारंवार जूवे छे तिष्ठासति स्थापयति अतिष्ठिपत् तेष्ठीयते उभा रहेवा माठे इच्छा छे | उभा रहेवा प्रेरणा करे छे उभा रहेवा प्रेरणा करी | वारंवार उभो रहे छे | वारंवार उभो रहे छे दित्सति दापयति अदीदपत् देदीयते दादेति आपवा माटे इच्छे छे / आपवा माटे प्रेरणा करे छे | आपवा प्रेरणा करी | वारंवार आपे छे वारंवार आपे छे पिपासति पाययति अपीपयत् पेपीयते पापेति पिवा माटे इच्छे छे पीवा माटे प्रेरणा करे छे| पीवा माटे प्रेरणा करी | वारंवार पीवे छे वारंवार पीवे छे वन्द् | विवन्दिषते वन्दयति अववन्दत् वावन्द्यते वावन्दीति वन्दन करवा माटे इच्छे छ वन्दन करवा प्रेरणा करे छे| वन्दन कराव्यो वारंवार वन्दन करे छे | वारंवार वन्दन करे छे विवर्धिषते वर्धयति अवीवृधत्/अववर्धत् | वरीवृध्यते वरीवृधीति वधवा माटे इच्छे छे | वधवा माटे प्रेरणा करे छे वधवा माटे प्रेरणा करी | वारंवार वधे छे वारंवार वधे छे पच् / पिपक्षति पाचयति अपीपचत् पापच्यते पापचीति
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