Book Title: Padma Vardhaman Sanskrit Dhatu Shabda Rupavali Part 02
Author(s): Rajpadmasagar, Kalyanpadmasagar
Publisher: Padmasagarsuri Charitable Trust

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Page 227
________________ -: साधित धातु :धातु सन्नन्त | प्रेरक प्रेरक अद्यतनी यन्त तृ, पु. एव तृ, पु. एव तृ, पु. एव / तृ, पु. एव भ्रम् बिभ्रमिषति भ्रमयति अबिभ्रमत् बंभ्रम्यते भटकवा इच्छे छे भटकावे छे भटकावा माटे प्रेरणा करी | वारंवार भटके छे भ्राज | बिभाजिषते भ्राजयति अबिभ्रजत्/अबभ्राजत् | बाभ्राज्यते शोभवा इच्छे छे शोभावे छे शोभवा माटे प्रेरणा करी| वारंवार शोभे छे व भ्रास | बिभ्रासिषते भ्रासयति अबिभ्रसत् बाभ्रास्यते दीपवा इच्छे छे दीपावे छे दीपवा माटे प्रेरणा करी | वारंवार दीपे छे भ्लास | बिभ्लासिषते भ्लासयति अबिभ्लसत् बाभ्लास्यते दीपq | दीपवा माटे इच्छे छे दीपावे छे दीपाव्यो वारंवार दीपे छे म्लें | मिम्लासति म्लाययति अमिम्लयत् माम्लायते करमा| करमावा माटे इच्छे छे / करमावे छे करमाव्यो वारंवार करमावे छे लम्ब | लिलम्बिषते लम्बयति अललम्बत् लालम्ब्यते लटकवू| लटकवा माटे इच्छे छे / लटकावे छे लटकाव्यो वारंवार लटकावे छे लष लिलसिषते लाषयति अलीलषत् लालष्यते यङ्गलुबन्त / तृ, पु. एव बंभ्रमीति / वारंवार भटके छे बाभ्राजीति / वारंवार शोभे छे बाभ्रासीति वारंवार दीपे छ बाभ्लासीति वारंवार दीपे छे माम्लेति | वारंवार करमावे छे लालम्बीति / वारंवार लटकावे छे लालषीति

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