Book Title: Nyayavatarvartik Vrutti Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Shantyasuri, Dalsukh Malvania Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad View full book textPage 7
________________ ६२ (५) आगमचच (अ) लौकिक आगम (आ) लोकोत्तर भागम [२] जैन आगमों में बाद भीर वादविद्या १ वादका महत्व ६ २ कथा ९ ३ विवाद ६ ४ वाददोष ५ विशेषदोष § ६ प्रभ ७ छलजाति (१) यापक (२) स्थापक (३) क (४) लूषक ६८ उदाहरण - ज्ञात- दृष्टान्त (१) आहरण (१) अपाय ( २ ) उपाय (३) स्थापनाक (४) प्रत्युत्पन्नविनाशी Jain Education International (२) भाहरणत देश (1) अनुशाखि (२) उपालम्भ (३) पृच्छा (४) निश्रावश्चन (३) आहरणतद्दोष (१) अधर्मयुक्त (२) प्रतिलोम ३) भारमोपनीय (४) रुपनीत (४) उपन्यास १) वस्तुपन्यास (२) तद्यवस्तूपन्यास (३) प्रतिनिभोपन्यास (४) हेतु पम्यास २ आगमोचरसाहित्य में जैनदर्शन विषयानुक्रमणिका । पृष्ठ ७९ [१] प्रमेयनिरूप ७९६१ तर, अर्थ, पदार्थ, तस्वार्थ ८० ६ २ सत्का स्वरूप जय पर्याय और गुणका ८२ १०२ ६ गुण भीर पर्यायसे द्रव्य वियुक्त नहीं प्रास्ताविक (अ) वाचक उमास्वातिकी देन प्रास्ताविक ८२५ काय ८६ ६ पुनलद्रव्य ८७ ६७ इन्द्रियनिरूपण ८८ ६८ अमूर्तद्रव्योंकी एकत्रावगाहना . ८९ ९० ९१ 919 ९१ 919 ९२ ११२ ९३ ११२ ९३ ६ ६ मति श्रुतका विवेक ११२ ९५ ७ मतिज्ञानके मेद ११३ ९५ ६८ अवमहादिके क्षण और पर्याव ११४ ९५ [३] नयनिरूपण ११५ ९६ प्रास्ताविक ११५ ९६ १ नयसंख्या ९७ ११५ ९७ ९ २ नयोंके लक्षण 194 ९७ ९ ३ नई विचारणा ११६ ९७ | (ब) आचार्य कुन्दकुन्दकी जैनदर्शनको देन ११७ ९८ प्रास्ताविक ११७ ९८ ९९ ९९ ९९ ९९ १०० १०० १०० १०१ १०१ १०१ पृ० १०३-१४१ [२] प्रमाणनिरूपण १ पंच ज्ञान और प्रमाणोंका समन्वय २. प्रत्यक्ष-परोक्ष ३ प्रमाणसंख्यान्तरका विचार ४ प्रमाणका लक्षण ५ शानोंका सहभाव और व्यापार [१] प्रमेयनिरूपण 51 तरच, अर्थ, पदार्थ और सार्थ २ अनेकान्तवाद ३ द्रव्यका स्वरूप | ४ सत् = द्रव्य= सत्ता ६५ अभ्य, गुण और पर्यायका सम्बन्ध | पाद-व्यय-व्य ९ स्वाद्वाव १० मूर्तमूर्तविवेक ११ पुत्रलद्रव्यव्याख्या १२ पुद्गलस्कन्ध १०३ १३ परमाणुच २०३ ६ १४ आत्मनिरूपण १०३ पृष्ठ १०४ १०४ १०४ १०६ १०७ • १०८ १०८ ११० ११० १२० १२० १२१ 9RR ७ सत्कार्यवाद असत्कार्यवादका समन्वय १२३ ६८ वयोंका भेद अभेद १२४ १२५ १२५ १२५ १२६ १२६ १२७ १२७ (1) निश्रय और व्यवहार For Private & Personal Use Only ११० 119 ११९ ११९ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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