Book Title: Nyayasindhu Prakaranam
Author(s): Vijaynemusuri
Publisher: Chimanlal Gokaldas Ahmedabad
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(१८)
न्यायसिन्धोः
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७८१
विषयः
श्लोकः सत्वादेस्समुदितस्य प्रधानत्वेऽपि समुदायत्वेनैव तक्ता प्रत्येकशस्तद्भावेऽपि कार्याजनकत्वतो न तथा विवक्षेति विकल्प्य खण्डनम् विस्तरतः ।
७६७-७७६ सत्वादित्रिकस्य निखिलवस्त्वनुगन्तृत्वादियोगत एकतत्व
त्वस्याविचारितरमणीयत्वमुपदर्शितम् ७७७ (७७८-७७९ सत्तास्वरूपं तत्तन्मतेनोपदर्य तस्य तत्वान्तरत्वमापादितम् ज्ञानादीनां तत्त्वान्तरत्वमावश्यकमिति दर्शितम् ७८० शानादीनां बुद्धितादात्म्याबुद्धावन्तर्भावे बुद्धयादीनां
प्रकृतावन्तर्भाव आपादितः धर्मिमात्रस्य तत्त्वता विकल्पप्य दूषिता ७८२-८३ मोक्षोपयोगिमात्रस्य तत्त्वतेन्यस्यापाकरणम् ७८५-८६ प्रमाणस्य पृथक्तत्वता प्रसञ्जिता
७८७ सामान्यस्य तत्वान्तरत्वप्रसञ्जनम्
७८८-९१ आविर्भाव तिरोभावयोस्तत्वान्तरत्वप्रसञ्जनम् ७९२-९३ आविर्भावतिरोभावयोः कार्यात्मकत्वमपहस्तितम् ७९४ ९८ आविर्भावतिरोभावयोः कारणात्मकत्वे दोषोपदर्शनम् साङ्ख्यमतखण्डनयुक्तया पातञ्जलदर्शनस्यापि खण्डनमिति ___दर्शितम् ८०८-९ (धान्न सम्भवतीति प्रश्नः ८१०१२ जैनाभ्युपगतं प्रमात्रा सह ज्ञानस्य कथञ्चित्तादात्म्यं विरोजैनस्य विरोधभीत्यभावे वेदान्तियोगाचारमाध्यमिकसौत्रा__न्तिकमताश्रयणप्रसञ्जनम् तार्किकाभ्युपगतमुक्तयभ्युपगमप्रसञ्जनम्
८१६ जैनस्य चार्वाकमताभ्युपगमापादनम्
८१७ जैनस्य विरोधभीत्यभावे मुक्तौ बन्धत्वस्य केवलज्ञाने भ्रमस्वस्य नये प्रमाणत्वस्य तीर्थकरे रागस्य सिद्धेऽसिद्धत्वस्य __बद्धे मुक्तत्वस्य दुष्टेऽदुष्टत्वस्य च प्रसञ्जनम् ८१८-२१ माने संशयत्वस्यानवस्थादावदोषत्वस्यचापादनम् ८२२-२३ परमतखण्डकदोषस्य तयवस्थापकत्वस्थ स्वपक्षस्थापक
गुणस्य स्वपक्षखण्डकत्वस्य च प्रसञ्जनम् ८२४-२५ स्याद्वादे एकान्तवादस्वस्य जये पराजयत्वस्य च प्रसञ्जनम् जैनमते विरोधापादनादिदोषाणां खण्डनात्मक जैनस्य प्रतिविधानम्
८२८ ( ८२६-२७ ) ( ८२९ तत्र दोषा अपि स्यावादानभ्युपगमेन सिद्धयन्तीति दर्शितम् केवलस्यासामानाधिकरण्यस्य विरोधलक्षणत्वे दोषोपद
८१३-१५

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