Book Title: Nitya Niyam Puja
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 4
________________ स्तुति : तुम तरणतारण तुम तरण-तारण भव-नि-वारण, भविक-मन आ-नंदनो | श्री नाभि-नंदन जगत-वंदन, आदि-नाथ नि-रंजनो ||१|| तुम आदि-नाथ अना-दि सेऊँ, सेय पद-पूजा करूँ | कैलाश-गिरि पर ऋषभ-जिन-वर, पद-कमल हिर-दै धरूँ |२| तुम अजित-नाथ अजीत जीते, अष्ट-कर्म महा-बली | यह विरद सुन-कर शरण आयो, कृपा कीज्यो नाथ-जी ||३|| __ तुम चंद्र-वदन सु चंद्र-लच्छन, चंद्र-पुरी पर-मेश्वरो | महा-सेन-नंदन जगत-वंदन, चंद्र-नाथ जि-नेश्वरो ||४|| तुम शांति पांच-कल्याण पूजूं, शुद्ध-मन-वच काय जू | दुर्भिक्ष चोरी पाप-नाशन, विघन जाय पलाय जू ||५|| तुम बाल-ब्रह्म विवेक-सागर, भव्य-कमल वि-काशनो | श्री नेमि-नाथ पवित्र दिनकर, पाप-तिमिर विनाशनो ||६|| जिन तजी राजुल राज-कन्या, काम-सेन्या वश करी | चारित्र-रथ चढ़ भये दुलहा, जाय शिव-रमणी वरी ||७|| कंदर्प-दर्प सु सर्प-लच्छन, कमठ-शठ निर्मद कियो | अश्वसेन-नंदन जगत-वंदन, सकल-संघ मंगल कियो ||८|| जिन-धरी बालक-पणे दीक्षा, कमठ-मान विदार के | श्री-पार्श्वनाथ-जिनेंद के पद, मैं नमूं सिर-धार के ||९|| तुम कर्म-घाता मोक्ष-दाता, दीन जानि दया करो | सिद्धार्थ-नंदन जगत-वंदन, महावीर जिनेश्वरो ||१०|| छत्र-तीन सोहें सुर-नर मोहें, वीनती अब धारिये | कर जो-ड़ि सेवक वीनवे प्रभु, आवा-गमन नि-वारिये ||११|| अब होउ भव-भव स्वामि मेरे, मैं सदा सेवक रहूं | कर जोड़ यो वरदान माँगें, मोक्ष-फल जावत लहँ ||१२|| जो एक माँही एक राजे, एक माँहि अने-कनो | इक-अनेक की नहीं संख्या, न सिद्ध नि-रंजनो ||१३||

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