Book Title: Nitya Niyam Puja
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 20
________________ जग में जिसको निज कहता मैं, वह छोड़ मुझे चल देता है | आकुल-व्याकुल हो लेता, व्याकुल का फल व्याकुलता है || मैं मैं शांत निराकुल चेतन हूँ, है मुक्तिरमा सहचरि मेरी | यह मोह तड़क कर टूट पड़े, प्रभु! सार्थक फल पूजा तेरी || ओं ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्यः मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। क्षणभर निजरस को पी चेतन, मिथ्यामल को धो देता है | काषायिक भाव विनष्ट किये, निज-आनंद अमृत पीता है || अनुपम-सुख तब विलसित होता, केवल - रवि जगमग करता है | दर्शन-बल पूर्ण प्रकट होता, यह ही अरिहन्त - अवस्था है || यह अर्घ्य समर्पण करके प्रभु ! निज- गुण का अर्घ्य बनाऊँगा | और निश्चित तेरे सदृश प्रभु ! अरिहन्त-अवस्था पाऊँगा || ओं ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्य: अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला भव-वन में जी भर घूम चुका, कण-कण को जी भर भर देखा | मृग-सम मृगतृष्णा के पीछे, मुझको न मिली सुख की रेखा || १ || सपने सारे, झूठी मन की सब आशाएँ | झूठे तन जीवन यौवन अस्थिर' हैं, क्षण भंगुर पल में मुरझाएँ ||२|| सम्राट् महाबली सेनानी, उस क्षण को टाल सकेगा क्या | अशरण' मृत काया में हर्षित, निज जीवन डाल सकेगा क्या ||३|| संसार ै महा-दुःखसागर के, प्रभु ! दुःखमय सुख-आभासों में | मुझको न मिला सुख क्षणभर भी, कंचन - कामिनि - प्रासादों में ||४|| मैं एकाकी एकत्व लिए, एकत्व लिए सब ही आते | तन-धन को साथी समझा था, पर वे भी छोड़ चले जाते ||५|| हु ये मैं इनसे, अतिभिन्न अखंड निराला हूँ | निज में पर से अन्यत्व' लिए, निज सम-रस पीनेवाला हूँ ||६|| 20

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