Book Title: Nitya Niyam Puja
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ मगसिर असित मनोहर दशमी, ता दिन तप आचरना | नृप-कुमार घर पारन कीनों, मैं पूजूं तुम चरना | ____नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्धमान जिनरायजी, मोहि राखो हो शरणा | ओं ह्रीं मार्गशीर्षकृष्ण-दशम्यां तपोमंगल-मंडिताय श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।३। शुक्ल-दशैं-बैसाख दिवस अरि, घाति चतुक क्षय करना | केवल लहि भवि भवसर तारे, जजू चरन सुखभरना | ____ नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्धमान जिनरायजी, मोहि राखो हो शरणा | ओं ह्रीं वैशाखशुक्ल-दशम्यां केवलज्ञान-मंडिताय श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।४। कार्तिक-श्याम-अमावस शिव-तिय, पावापुर तें वरना | गण-फनिवृन्द जजें तित बहुविध, मैं पूजू भयहरना | नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्धमान जिनरायजी, मोहि राखो हो शरणा | ओं ह्रीं कार्तिककृष्ण-अमावस्यायां मोक्षमंगल-मंडितायअर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।५। जयमाला गणधर अशनिधर चक्रधर, हलधर गदाधर वरवदा | अरु चापधर विद्या-सु-धर, तिरशूलधर सेवहिं सदा || दुःखहरन आनंदभरन तारन, तरन चरन रसाल हैं | सुकुमाल गुन-मनिमाल उन्नत, भाल की जयमाल है || जय त्रिशलानंदन, हरिकृतवंदन, जगदानंदन चंदवरं | भवताप-निकंदन, तनकन-मंदन, रहित-सपंदन नयनधरं || जय केवलभानु-कला-सदनं, भवि-कोक-विकासन कंज-वनं | जगजीत महारिपु-मोहहरं, रजज्ञान-दृगांबर चूर करं ||१|| गर्भादिक-मंगल मंडित हो, दुःख-दारिद को नित खंडित हो | जगमाँहिं तुम्हीं सतपंडित हो, तुम ही भवभाव-विहंडित हो ||२|| हरिवंश-सरोजन को रवि हो, बलवंत महंत तुम्हीं कवि हो | लहि केवलधर्म प्रकाश कियो, अब लों सोई मारग राजति हो ||३|| पुनि आप तने गुण माहिं सही, सुर मग्न रहें जितने सबही | तिनकी वनिता गुन गावत हैं, लय-ताननि सों मनभावत हैं ||४|| पुनि नाचत रंग उमंग भरी, तुव भक्ति विषै पग एम धरी | झननं झननं झन झननं, सुर लेत तहाँ तननं तननं ||५|| घननं घननं घन-घंट बजे, दृम दृम दृम दृम मिरदंग सजे | गगनांगन-गर्भगता सुगता, ततता ततता अतता वितता ||६|| धृगतां धृगतां गति बाजत है, सुरताल रसाल जु छाजत है | सननं सननं सननं नभ में, इकरूप अनेक जु धारि भ्रमें ||७|| किन्नर-सुरि बीन बजावत हैं, तुमरो जस उज्ज्वल गावत हैं | करताल विर्षे करताल धरें, सुरताल विशाल जु नाद करें ||८|| इन आदि अनेक उछाह भरी, सुर भक्ति करें प्रभुजी तुमरी | तुमही जगजीवन के पितु हो, तुमही बिन कारन तें हितु हो ||९|| 45

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53