Book Title: Nitya Niyam Puja
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 25
________________ तंदुल सालि सुगंध अति, परम अखंडित बीन | जा सों पूजौँ परमपद, देव-शास्त्र-गुरु तीन ||३|| ओं ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्य अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। जे विनयवंत सुभव्य-उर-अंबुज-प्रकाशन भान हैं | जे एक मुख चारित्र भाषत त्रिजगमाँहिं प्रधान हैं || लहि कुंद-कमलादिक पहुप भव-भव कुवेदन सों बयूँ | अरिहंत श्रुत-सिद्धांत गुरु-निर्ग्रन्थ नित पूजा रयूँ || (दोहा) विविध भाँति परिमल सुमन, भ्रमर जास आधीन | जा सों पूजौँ परमपद, देव-शास्त्र-गुरु तीन ||४|| __ओं ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्य: कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। अतिसबल मदकंदर्प जाको क्षुधा-उरग अमान है | दुस्सह भयानक तासु नाशन को सु-गरुड़ समान है || उत्तम छहों रसयुक्त नित नैवेद्य करि घृत में प→ | अरिहंत श्रुत-सिद्धांत गुरु-निर्ग्रन्थ नित पूजा रचूँ || (दोहा) नानाविधि संयुक्तरस, व्यंजन सरस नवीन | जा सों पूजों परमपद, देव-शास्त्र-गुरु तीन ||५|| ओं ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। जे त्रिजग-उद्यम नाश कीने मोह-तिमिर महाबली | तिहि कर्मघाती ज्ञानदीप प्रकाशज्योति प्रभावली || इह भाँति दीप प्रजाल कंचन के सुभाजन में खर्चे अरिहंत श्रुत-सिद्धांत गुरु-निर्ग्रन्थ नित पूजा रचूँ || (दोहा) स्व-पर-प्रकाशक ज्योति अति, दीपक तमकरि हीन | जा सों पूजौं परमपद, देव-शास्त्र-गुरु तीन ||६|| ओं ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्यो मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। जो कर्म-ईधन दहन अग्नि-समूह-सम उद्धत लसे | वर धूप तासु सुगन्धताकरि सकल परिमलता हँसे || इह भाँति धूप चढ़ाय नित भव-ज्वलन माहिं नहीं पयूँ | अरिहंत श्रुत-सिद्धांत गुरु-निर्ग्रन्थ नित पूजा र || __ (दोहा) अग्निमाँहि परिमल दहन, चंदनादि गुणलीन | जा सों पूजौं परमपद, देव-शास्त्र-गुरु तीन ||७|| ओं ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्यः अष्टकर्मविध्वन्सनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। लोचन सुरसना घ्राण उर उत्साह के करतार हैं | मो पे न उपमा जाय वरणी सकल-फल गुणसार हैं || सो फल चढ़ावत अर्थपूरन परम अमृतरस सचूँ | अरिहंत श्रुत-सिद्धांत गुरु-निर्ग्रन्थ नित पूजा रचूँ || (दोहा) 25

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