Book Title: Nitya Niyam Puja
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
सिद्ध-पूजा का अर्घ्य
वंदा ||
जल-फल वसुवृंदा अरघ अमंदा, जजत अनंदा के कंदा | मेटो भवफंदा सब दुःखदंदा, 'हीराचंदा' तुम त्रिभुवन के स्वामी त्रिभुवननामी, अंतरयामी अभिरामी | शिवपुर-विश्रामी निजनिधि पामी, सिद्ध जजामी सिरनामी || ओं ह्रीं श्री अनाहत-पराक्रमाय सर्व-कर्म-विनिर्मुक्ताय सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । ९ । विद्यमान बीस तीर्थंकरों का अर्घ्य
जल-फल आठों दरव, अरघ कर प्रीति धरी है, गणधर इन्द्रनि हू तैं, थुति पूरी न करी है | 'द्यानत' सेवक जानके (हो), जग तें लेहु निकार ||
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह - मँझार | श्री जिनराज हो, भवि-तारणतरण जहाज (श्री महाराज हो) || ओं ह्रीं श्री सीमंधर-युगमंधर- बाहु - सुबाहु - संजात-स्वयंप्रभ-ऋषभाननअनन्तवीर्य-सूर्यप्रभ- विशालकीर्ति-ज्रधर - चन्द्रानन-भद्रबाहु-भुजंगमईश्वर - नेमिप्रभ - वीरसेन - महाभद्र - देवयश - अजितवीर्य इति विदेह क्षेत्रे विद्यमान- विंशति- तीर्थंकरेभ्यो नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा | ( जोगीरासा छन्द)
भूत-भविष्यत्-वर्तमान की, तीस चौबीसी मैं ध्याऊँ | चैत्य-चैत्यालय कृत्रिमाकृत्रिम, तीन-लोक के मन लाऊँ || ओं ह्रीं त्रिकालसम्बन्धी तीस चौबीसी, त्रिलोकसम्बन्धी कृत्रिमाकृत्रिम चैत्य-चैत्यालयेभ्यः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
चैत्यभक्ति आलोचन चाहूँ कायोत्सर्ग अघनाशन हेत | कृत्रिमा कृत्रिम तीन लोक में, राजत हैं जिनबिम्ब अनेक || चतुर निकाय के देव जजैं, ले अष्टद्रव्य निज-भक्ति समेत | निज-शक्ति अनुसार जजूँ मैं, कर समाधि पाऊँ शिव-खेत || ओं ह्रीं त्रिलोकसम्बन्धी समस्त - कृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालय - सम्बन्धी जिनबिम्बेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्व-मध्य-अपराह्न की बेला, पूर्वाचार्यों के अनुसार | देव-वंदना करूँ भाव से, सकल-कर्म की नाशनहार || पंच महागुरु सुमिरन करके, कायोत्सर्ग करूँ सुखकार | सहज स्वभाव शुद्ध लख अपना, जाऊँगा अब मैं भवपार || (पुष्पांजलिं क्षेपण कर नौ बार णमोकार मंत्र जपें)
27

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53