Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

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Page 10
________________ भयथी कोइ स्थले विस्तृत अर्थ करवामां आवेल नथी, त्यां वाचकोए गुरुामथी या तो पोतानी बुद्धिथी अर्थनुं समाधान करी देवु. आ आ ग्रंथ छपाववा माटे केटलाक सद्गृहस्थोए द्रव्यनी सहायता आपी छे ते बदल तेमनो उपकार मानवामां आवे छे. आ स्थळे कोइ धर्मबंधुने शंका थशे के ' ग्रंथ छपावका माटे मदद मळ्या छतां पुस्तकी किंमत राखवामां आवी छे, तेनुं कारण शुं ? ? बाबत माटे एज स्पष्टीकरण छे के घणीवार एवं बने छे के कोइ उपयोगी पुस्तक प्रगट करवुं होय - तो ते बदल मदद मेळववी बहु मुश्केल थइ पड़े छे. ए मुश्केली दूर करवा आ पुस्तकनी जे आवक थशे, तेनो उपयोग मुनि रविचंद्रजी महाराजनी अनुमति प्रमाणे बीजा आवा उपयोगी ग्रंथ छपाववा माटे करवामां आवशे. जेथी आ पुस्तक लेनारने ' एक पंथ ने दो काज ' जेवुं थशे. वळी आ पुस्तकमा विविध श्लोकोनो संग्रह करवामां गुरुवर्य मुनिश्री रविचंद्रजी महाराजे अथाग परिश्रम लीधो छे एटलुं ज नहि पण तेमनी प्रेरणाथीज आ रसिक पुस्तक प्रगट करवानुं मने भाग्य प्राप्त थयुं छे एम कहेवामां लेश पण अतिशयोक्ति जेवुं नथी. माटे आ स्थळे ते गुरुश्रीनो अंतरथी उपकार मानवामां हुं मारा अहो भाग्य समजुं छं.

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